रात भर रोती रही क्यों, रजनी दिवाकर के प्रणय में |
सोचती थी प्रिय मिलन की,आस क्यों है दूर मग में ||
थी गिराती अश्रु-जल जब, त्याग करके धैर्य मन में |
देखती है राह रवि की, अश्रुजल -पूरित नयन में ||
प्रात ही तुरग रथ पर, आ गया रवि उदयगिरि पर |
देखता है अश्रुमोती, किसने बिखेरा हैं अवनि पर ||
तब शीघ्र ही रवि-रश्मियाँ, पोंछती दृग नीर मग में |
रात भर रोती रही क्यों,रजनी दिवाकर के प्रणय में ||
पा गयी स्पर्श ऊषा, जब प्रभाकर की किरण का |
खिल गये कमल सर में,संयोग पाकरके मिलन का ||
देखकर मुस्कान दिनकर, भेष धारण की मधुप का |
चूमने मुख- कमल उसका ,गीत गया है मिलन का ||
उठ रही थी मधुर आभा, प्रकृति के प्रत्येक कण से |
उठ रही थी तुमुल नादें, खगकुलों की निकट वन से ||
ले रहे अम्बर- जलधि में, डुबकियाँ उडगन गगन में |
रात भर रोती रही क्यों, रजनी दिवाकर के प्रणय में ||
उठने लगी थी ऊर्ध्व नादें ,जो बज रहीं थीं देवगृह में |
बह रहा सौरभ पवन जो निस्सरित तत्क्षण हवनि से ||
हो गया साम्राज्य रवि का, प्रभानुमोदित चतुर्दिशि में |
आ गयीं जल हेतु सखियाँ,कमलदल शोभित सलिल में ||
रवि-रश्मियों की प्रखरता से, जागृति आयी अवनि में |
तब चह चहाकर उड़ चले हैं असंख्य नभचर गगन में ||
रात भर रोती रही क्यों, रजनी दिवाकर के प्रणय में |
सोचती थी प्रिय- मिलन की, आस क्यों है दूर मग में ||
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