हे तरुणाई तुम एक बार,
ले ले जग में फिर अंगडाई |
ले ले जग में फिर अंगडाई |
संग में भीषण तूफ़ान लिए,
ला दे उपवन में अरुणाई ||
ला दे उपवन में अरुणाई ||
है संतप्त धरा अब उन्मादों से,
अहलादों की बूँद गिरा तो दे |
अहलादों की बूँद गिरा तो दे |
इस क्षुब्ध ह्रदय जन पीड़ा में
नभ से मधु श्रोत बहा तो दे ||
नभ से मधु श्रोत बहा तो दे ||
कलियों के संग देखा तुझको,
जब सौरभ बनकर छायी थी |
जब सौरभ बनकर छायी थी |
नदियों में भी देखा है तुझको,
कल कल ध्वनि बन आयी थी || देखा बादल के बीच तुझे जब,
विद्युत् बनकर तू चमकी थी |
विद्युत् बनकर तू चमकी थी |
जन मन आनंद बनी थी जब,
सलिल बिंदु बनकर बरसी थी ||
सलिल बिंदु बनकर बरसी थी ||
अब एक गुजारिश मेरी भी है ,
यदि रुचिकर हो तो सुन लेना |
यदि रुचिकर हो तो सुन लेना |
स्तब्ध दिशा में चुपके चुपके,
तू जन मन में करवट ले लेना ||
तू जन मन में करवट ले लेना ||
कितना सुरम्य वह दिन होगा,
जब उतरे भू-पर कोई तरुणाई |
जब उतरे भू-पर कोई तरुणाई |
होगी नवक्रांति अवनि पर भी ,
तब गूंजेगी फिर कोई शहनाई ||
तब गूंजेगी फिर कोई शहनाई ||
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