हे ग्रामवासिनी-भारतमाता,तुझको शत-शत मेरा प्रणाम |
मानचित्र पर तेरी अनुकृति, विविध रूप जब दिखलाती है |
वर्णन कैसे करूं अकिंचन, मुझको अब ग्राम्या ही भाती है||
कोटि- कोटि कंठों से वाणी, जब जब महिमा तेरी गाती है |
प्रेम दया आंचल में भरकर, तू करुण- भाव छलकाती है ||
प्रेम दया आंचल में भरकर, तू करुण- भाव छलकाती है ||
सचमुच जननी जन्म -भूमि का, ही कहलाता दूजा नाम |
हे ग्रामवासिनी- भारतमाता,तुझको शत-शत मेरा प्रणाम ||
ये वन उपवन है केश तुम्हारे, मस्तक अचल हिमालय है |
वेद पुराण अरु उपनिषद गीता, परमात्मा सब देवालय है ||
नदियाँ रक्त- धमनियां सी हैं, और मानवता रक्त -प्रवाह है |
सूर्य और चन्द्रमा नेत्र सदृश हैं, और तेरे कंधे बने पठार हैं ||
विविध धर्म और भाषा से निःसृत,संस्कृति अमृत-समान|
हे ग्रामवासिनी- भारतमाता,तुझको शत-शत मेरा प्रणाम||
कच्छ व बंग दो हाथ तुम्हारे, और उदर शेष भू-भाग हैं|
कच्छ व बंग दो हाथ तुम्हारे, और उदर शेष भू-भाग हैं|
हर भारतवासी है रोम तुम्हारा, संस्कृति अमर सुहाग है ||
हिंद व अरब सागर पग तेरे, कटि-प्रदेश विन्ध्याचल है |
नीलाम्बर है परिधान सुघर सा, प्रखर- प्रभा उदयाचल है ||
तुम पालनकर्त्री हो कोटि जनों की,यह भारत तेरा विशाल |
हे ग्रामवासिनी- भारतमाता, तुझको शत-शत मेरा प्रणाम||
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