शस्य श्यामला भारत-भू पर, जन मन की एक पुकार |
तन, मन, धन की क़ुरबानी से, सदा करें माँ का उद्धार ||
राम कृष्ण की भूमि आज, सुर मुनि का करती आह्वान |
नानक, तुलसी, बुद्ध सदृश, संतो ने संवारी इसकी शान ||
गाँधी, सुभाष व नेहरू जैसे, क्रांति- दूत का देश महान |
आदर्शों के सम्वर्धन में ही , अर्पित की कितनो ने प्राण ||
आज उन्हीं पदचिहनो पर ही,भारत के जन करें गुहार |
तन, मन, धन की क़ुरबानी से, सदा करें माँ का उद्धार ||
सर्व- धर्म के संगम से ही, नित होता मंगल अभिषेक |
भाषा जाति वर्ग बहुतेरे, फिर भी इसकी संस्कृति एक ||
लहराता सागर करूणा का, सुना रहा अनुपम सन्देश |
विश्व शान्ति के लिए अहिंसा, का देता जो नव सन्देश ||
ऐसी पुण्यमयी वसुधा पर, सुख संवृद्धि की पड़े फुहार |
ऐसी पुण्यमयी वसुधा पर, सुख संवृद्धि की पड़े फुहार |
तन, मन, धन की क़ुरबानी से,सदा करें माँ का उद्धार ||
टिक न सके डच फ्रासीसी, अंग्रेज फिरंगी के दृढ पैर |
यद्यपि लुटे खूब इसे वे , बो- बो कर जनता में बैर||
व्यापार नीति का झंडा ले,करने आये थे भारत सैर |
गहरी चाल चली फिर भी,वे बचा न पाए अपनी खैर ||
जब जब विपदा आई ऐसी,तब तब जागृति ने ली हुंकार|
तन, मन, धन की क़ुरबानी से, सदा करें माँ का उद्धार ||
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