जिन्दगी की राह तुमको, जब कभी सूनी लगे तो |
परछाईयों में देखना कोई हमसफ़र मिल जायेगा १||
अब वक्त ने हमको जुदाई, दे रखी है उम्र भर की |
तुम वफा की राह पर, इन फासलों से पूंछ लेना ||२||
मिल सकूं शायद ना वैसे, जैसे मिलता था कभी |
अब हम मिलेंगे ख़्वाब में ही, जो तुम्हारे पास ही ||३||
वादा किया उम्र भर का, दो कदम भी चल न पाया |
दोष यह मेरा नहीं है, बस नियति की है शरारत ||४||
प्यार जब चट्टानों से, टकराने का संकल्प लेता | हालात कुछ ऐसे ही होते , यह तो नियति की मार है || ५||
आग कुछ ऐसी भी हैं, जिनमे धुआं होता नहीं |
बाद में राखें ही उनकी , करती है दस्ताने बयाँ ||६||
किस काम की है यारों, यह दिखावे की जिन्दगी |
वादा किसी से कर चुके, अब यह कैसी दिल्लगी ||७||
भूलकर साकी कोई, देखे तुम्हें अनजाने से भी |
बच नहीं सकता खुदा भी, मय के इस पैमाने से||८||
हर मिलन में ही छिपी है, बिछुड़ने की कसक भी |
शायद बिछुड़ने में मिलन की,आस भी छिपी होती ||९||
जब गुजरता है तुम्हारे, सामने से शख्स कोई |
रूप दर्पण में उसी की, नजरें लगती खोई खोई ||१०||
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