बचपन की मधुमय वह स्मृति
जो थी चंचलता का एक प्रवाह
आनंद- श्रोत वह जीवन का था
विधि हाय उसे क्यों छीन लिया
स्मृति- पथ का राही बन करके
जब जब याद किया बचपन को
लगता सचमुच कोई चुरा लिया
जीवन-लय के उस सरगम को
मां की ममता का मोद लिए
नित भू पर क्रीडा करता था
क्रोध, मोह,ईर्ष्या इन सबका
आभास न मुझको होता था
है छीन लिया विधि ने उसको
जो साधन जीवन पथ का था
आनंद श्रोत लुट गया मेरा वह
जो जीवन का अरुणोदय था
बचपन ही ऐसी अमूल्य निधि
जिसका गौरव हर इक जन को
जो नीव बन गयी है जीवन की
अब जीवन-प्रासाद को रचने को
क्या वक्त गुजरते जीवन का
फिर से वह वैभव आ पाएगा
जीवन के इस दुर्गम पथ पर ही
क्या बचपन वापस आ पायेगा
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