अनन्त आकाश के नीचे, गूंथता हार सुमनों का |
निशा के पार देखा तो,मिला अवसान सपनों का||
रोती थी याद में तेरे, मधुरिमा रात भर यूँ ही |
देखो अश्रु जल बिखरे, तृणों के अग्र कोरों पर ||
जलाकर दीप तारों का,रात भर आरती की है |
भीगी घासों की चादर,डाल रखा है ख़्वाबों पर ||
मिलेगा आज लगता है, कोई आयाम सपनों का |
निशा के पार देखा तो,मिला अवसान सपनों का ||
मधुर सपने शीघ्र ही तुम, दिव्य अनुदान ले आओ |
सरस झंकार से झंकृत, प्रबल अरमान बन जाओ ||
तप्त-काया को शीतल कर, कोई वरदान दे जाओ |
व्यथा मन की मिटाकर तुम,घनश्याम बन जाओ ||
अमृत की वृष्टि कर जाओ, करो उद्धार अपनों का|
निशा के पार देखा तो,मिला अवसान सपनों का ||
बना दो फूल की शैय्या, गगन पट डाल दो उस पर |
उसी की गोद में अब देखूं, मधुर सपने सुहाने हम ||
देखकर ख़्वाब धरती पर, प्रणय के गीत जब गाऊँ |
मधुर सपने तुम्ही तो हो, जिससे हम भुलायें गम ||
विदा हो जाओ अब सपनों, लिए माधुर्य यादों का |
निशा के पार देखा तो, मिला अवसान सपनों का ||
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