लिखा हुआ इतिहास जहाँ का, तरकश धनुष कृपाणों से|
कायरता ठहर सकेगी क्या, उन स्वाभिमान की राहों में ||
अब तक कितने ही देश भक्त, इस धरती पर बलिदान हुए |
विश्व- प्रेम की ज्योति जलाकर, हंस हंसकर कुर्वान हुए ||
देश, प्राण और प्राण, देश जो, एकार्थ बने हैं अब तक भी |
जिस जौहर की अग्नि शिखा से, पिघल चुके हैं पत्थर भी ||
आन बान पर मर मिटने को, संग में केसरिया बाना था |
युद्ध-भूमि पर मरते मरते जब, दुश्मन ने लोहा माना था ||
धरती कांप उठी थी उस दिन,जब लक्ष्मी ने तलवार संभाली |
हिम्मत तो हार गये थे दुश्मन, उस अबला की देख सवारी ||
चित्तौड़ व दुर्ग के वे युद्धस्थल, अब भी दम रखते उतनी हैं |
कभी अत्याचार सहन करने की, आदत उनकी नहीं पड़ी है ||
सदियों से भारत का यह प्रहरी, शीश उठकर देख रहा है|
किसमे इतनी ताकत है जो, शक्ति- ह्रास को सोच रहा है ||
भू -रक्षा के गौरव की खातिर,कितनो ने खून बहाया था |
कितनो के श्रम से सिंचित, प्रतिफल हमने ले पाया था ||
मुक्त हुए है ब्रिटिश पाश से, अर्पित करके तन मन धन |
गांधी सुभाष नेहरू पटेल को, आज हिन्द कर रहा नमन ||
इतिहास बताता है हमको, हम कितनी यात्रा कर आये हैं |
युग-पुरूषों के पद चिह्नों पर, क्या क्या अब तक ले पाए हैं ||
भारत भू-सेवा के क्रम में, नेहरू कुल का बलिदान अतुल |
पिता, पुत्र, पुत्री सब मिलकर, तोड़े कुछ ऐसे व्यूह प्रबल ||
इंदिराजी के देश भक्ति से तो, हम उपकृत सब भारतवासी |
जीवन के अंतिम क्षण तक, जन सेवा ही मन में थी ठानी ||
रह गयी अधूरी ही अभिलाषा, बहुतेरे कार्य अभी बाकी थे|
हरियाली से शून्य अभी भी, कुछ स्थल यहाँ पड़े ख़ाली थे||
अनुचर के विश्वासघात की, परिणति मृत्यु सहज ले आयी |
भारत के हर एक उपवन में, दुःख की बदली बनकर छायी ||
तब डूब गये सब भारतवासी, शोक सिन्धु के गहरे तल में |
भारतमाता के करुण-क्रन्दन से,एक लहर है उठी गगन में ||
तब दौड़ पड़ा था अखिल विश्व ही, भारत के अश्रु मिटाने को |
हतप्रभ थे सब उस कुर्वानी पर, अपना दिल दर्द दिखाने को ||
अश्रु-सरोवर से उपजे तब, राजीव विहंस करके यह बोले |
हममें भी तो रक्त वही है लो, मैं तत्पर हूँ निज कंधा खोले ||
एक तरफ माता की अर्थी थी, तो एक तरफ शासन का भार|
सक्षम हैं दोनों दृढ कंधे अब, हम कभी नहीं खा सकते हार ||
हम सब भी हैं संतान भरत की, उन जैसा अपना भी सपना |
बचपन में ही केहरि के मुख से, कर लेना दांतों की गणना ||
आपत्तिकाल में तो साहस की, सदा सफलता करती है पूजा |
जीवन में आगे बढने का, इससे बढ़कर कोई मार्ग ना दूजा ||
ऐसे धैर्य और साहस का परिचय, राजीव दे रहे थे उस क्षण |
पुलकित थी भारत माता भी, रोमांचित धरती के कण-कण ||
उद्वेलित भारत जन मन को, ऐसे नायक की ही रही कामना |
राष्ट्र की उन्नति में जिसकी सेवा, देश-भक्ति की भरे भावना ||
इंदिराजी के त्याग व तपस्या को,मानों कोई मिल गयी दुआ|
जन मत से इस वीर पुत्र का, तब राजतिलक सोल्लास हुआ||
राज्यासन का तो गर्व नहीं था, जन -सेवा के उन आदर्शों पर |
शांति -मार्ग के अनुयायी बन, नेहरू के पथ का किया वरण||
सत्ता निज हाथों में लेते ही, कुछ वे विपदाओं से घिर गये तुरत |
पंजाब असम समझौतों पर भी, वे अग्नि-परीक्षा से गये गुजर ||
राष्ट्रीय-एकता की खातिर हर एक कोशिश में वे दिखते तत्पर |
धर्म जाति से परे ऍक राष्ट्र की, नव-संरचना में दिखते अग्रसर||
तब विश्व शांति के लिए उन्होंने,अखिल विश्व का भ्रमण किया |
परमाणु युद्ध के खतरों से भी,निज मुक्ति हेतु कुछ पहल किया ||
युवकों में आशा दीप जला कर, शिक्षा में कर दी नव परिवर्तन |
नव भारत के नव निर्माण हेतु, कुछ प्रस्तुत किये नये अवसर ||
मुस्कानों से उनके सुधा टपकती, संभाषण में दिखते शक्तिमान|
मजदूरों के थे परम हितैषी, और वृद्ध जनों का करते सम्मान ||
पंचायतीराज के अनुशासन का भी, जो सपना गांधी ने था देखा |
उनको संवैधानिक मूल्य सहित, जन जन तक राजीव ने भेजा ||
रामराज्य का यह नव प्रयोग, तब गाँवों में एक लहर ले आयी |
इक्कीसवीं सदी की देहली पर, वह दस्तक बन कर तब आयी ||
विज्ञानं धर्म और संस्कृति में भी,उन्नति के मार्ग प्रशस्त किये|
मंगल चन्द्र नक्षत्रों पर भी, अब मानव के मंगल अभिषेक किये||
कृषि उद्द्योग विकासों में भी, सौ गुनी सफलता लेकर आये हैं |
वैज्ञानिक कृषि- संयंत्रों से तो, वे पृथ्वी को स्वर्ग बना डालें हैं ||
इक्कीसवीं सदी में ले चलने को, जन जन में जागृति लाया है |
साध्य नहीं बदला फिर भी, साधन में नव परिवर्तन आया है ||
गुटनिरपेक्ष सिद्धांतों को भी, व्यावहारिकता का जामा पहनाया |
देश विदेश भ्रमण कर करके, बस मैत्री का ही सन्देश सुनाया ||
भुला नहीं सकते कदापि हम, वह पथ जो हमको है दिखलाया |
नव युवकों के आशा दीप बने, और निर्बल को अधिकार दिलाया ||
युग पुरुष थे युग क्रांति के थे, और भारत- भविष्य के निर्माता भी |
वे विश्व शांति के प्रबल समर्थक,और संचार क्रांति के उदगाता भी ||
नेहरू के सपनों का वह नव भारत, तब साकार रूप लेने वाला था |
पंचशील के उन सिद्धांतों की भी, सम्यक समीक्षा कर डाला था ||
शान्ति-दूत राजीव निडर होकर, तब देने चले शान्ति -सन्देश |
राष्ट्रीय-एकता की खातिर वे,युवकों में जगा रहे ऍक नव उन्मेष ||
इतने में हिंसा मुखर हो गयी,और दानवता ने भी की अट्टहास |
बापू की समाधि भी फट करके,अब छूने लगी अनन्त आकाश ||
इक्कीस मई की कालरात्रि जब, मानवता पर ऐसे की प्रतिघात |
तब बिलख पड़ी भारतमाता, और कलुषित हुआ पुन: इतिहास ||
धूमकेतु सा जो उदय हुआ था, राजनीति के इस नीलगगन में |
अस्त हुआ भी तो ऐसे ज्यों लगता, उल्का टूट गया कोई नभ से ||
शोकाकुल अपना परिवार देश तज, चिरनिद्रा में ली पूर्ण विराम |
काश ?स्वप्न सार्थक हो जाते, मिल जाता उनको वांछित आयाम ||
अमर रहेगा उत्सर्ग तुम्हारा, और अमर रहेगा अनुपम बलिदान |
करते अब हम सब भारतवासी, श्रद्धा सुमनों से शत शत प्रणाम ||