किसी के आंसुओं को पोंछना तो धर्म समझो ही ,
प्रथम तो मुस्कराने की कला उनको सिखाना है ||
सभी बैठे हैं नैय्या में पार होने की आशा से ,
कोई पतवार ले करके क्यों नहीं तैयार होते हैं |
सहारा तो माँगते हैं सब मगर देते नहीं कोई,
डूबती नाव जब देखा तो वहीँ असहाय रोते हैं ||
सहारा बेसहारों को सुलभ करना नहीं मुश्किल,
उन्हें भी बेसहारों के निकट आना सिखाना है|
किसी के आंसुओं को पोंछना तो धर्म समझो ही ,
प्रथम तो मुस्कराने की कला उनको सिखाना है||
किसी भी असहाय प्राणी को गले अपने लगा करके ,
ह्रदय में शान्ति की ऎसी सुखद अनुभूति पाओगे |
जब किसी भूले हुए राही को उसका पथ बताओगे
उपकृत कर उसे तुम पथ-प्रदर्शक भी कहलाओगे ||
स्वार्थ के केंद्र से संकीर्णता की परिधि मत खींचो,
तुम्हे परमात्मा की शरण में कुछ श्रेय पाना है |
किसी के आंसुओं को पोंछना तो धर्म समझो ही,
प्रथम तो मुस्कराने की कला उनको सिखाना है ||
किसी को एक मुट्ठी अन्न दे तुम दाता न कहलाना,
उसे तुम बीज बो करके उपज लेना भी सिखा देना |
यही सेवा मनुजता की और यही आराधना प्रभु की ,
मनुजता को यही अधिकार तुम वापस दिला देना ||
इसी कर्तव्य को उपकार का एक नाम दे करके,
उपकृत बंधुओं में भी एकता का भाव लाना है |
किसी के आंसुओं को पोंछना तो धर्म समझो ही,
प्रथम तो मुस्कराने की कला उनको सिखाना है ||
जिन्दगी के विभिन्न पहलू नए आयाम है लाते,
ना जाने कितने रूपों में कुछ प्रतिमान दे जाते|
भ्रमित हो करके जो प्राणी कभी संतुष्टि ना पाते,
निराशा के क्षितिज पर वे सदा आपत्ति ले आते ||
ह्रदय में काम ईर्ष्या लोभ की ज्वाला बुझा करके,
उन्हें आनंद का शाश्वत सुखद पथ भी बताना है |
किसी के आंसुओं को पोंछना तो धर्म समझो ही ,
प्रथम तो मुस्कराने की कला उनको सिखाना है ||
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