मातु वरदायिनी ,ऐसा वरदान दो, लोक मङ्गलमयी सर्जना कर सकूँ।
शुद्ध अंतःकरण मन प्रफुल्लित रहे,
बुद्धि और भावना में समन्वय बने।
विघ्न बाधाओं पर भी नियंत्रण करो,
लोभ के संवरण, अब न हमको छलें।
मोहमाया से जीवन प्रभावित न हो,ऐसी सदवृत्ति का अनुगमन कर सकूँ।
मातु वरदायिनी, ऐसा वरदान दो, लोक मङ्गलमयी सर्जना कर सकूँ।
मातु इतना तो सामर्थ्य मुझमें भरें,
दीन दुःखियों की सेवा मैं करता रहूँ।
मन अहंकार से निष्प्रभावित रहे ,
लोकहित के लिए साधनारत रहूँ।
'असतो मा सदगमय' के महामन्त्र से,विश्वकल्याण की कामना कर सकूँ।
मातु वरदायिनी, ऐसा वरदान दो, लोक मङ्गलमयी सर्जना कर सकूँ।
द्वेष, दुर्भावना पर,नियन्त्रण रहे ,
ऐसा वातावरण, मां हमेशा मिले।
दृष्टि में प्रेम हो,पर प्रलोभन नहीं,
छाँव अमराईयों की, हमें न छलें
लेखनी को भी ऐसी समृद्धि मिले,ताकि तेरा ही गुणगान मैं कर सकूँ।
मातु वरदायिनी, ऐसा वरदान दो,लोक मङ्गलमयी सर्जना कर सकूँ।
प्रेम से छलछलाता, हृदय दो मुझे,
वाणी में सौम्यता,स्वर सरस दो हमें।
आचरण में प्रदर्शन, न आये कभी ,
ऐसे वरदान से, धन्य कर दो हमें।
भाव संवेदनापूर्ण सत्कार्य से,अपने जीवन को सार्थक मैं कर सकूँ।
मातु वरदायिनी,ऐसा वरदान दो,लोक मङ्गलमयी सर्जना कर सकूँ।
वक्त पर दूसरों के काम आ सकूँ ,
मातु इतना ही सामर्थ्य देना हमें।
ज़िन्दगी में निराशा न आये कभी,
सिर्फ खुशियों की सौगात देना हमें।
कर्म से आत्म सन्तोष मिलता रहे,अंत में आपकी ही शरण आ सकूँ।
मातु वरदायिनी,ऐसा वरदान दो,लोक मङ्गलमयी सर्जना कर सकूँ।
शुद्ध अंतःकरण मन प्रफुल्लित रहे,
बुद्धि और भावना में समन्वय बने।
विघ्न बाधाओं पर भी नियंत्रण करो,
लोभ के संवरण, अब न हमको छलें।
मोहमाया से जीवन प्रभावित न हो,ऐसी सदवृत्ति का अनुगमन कर सकूँ।
मातु वरदायिनी, ऐसा वरदान दो, लोक मङ्गलमयी सर्जना कर सकूँ।
मातु इतना तो सामर्थ्य मुझमें भरें,
दीन दुःखियों की सेवा मैं करता रहूँ।
मन अहंकार से निष्प्रभावित रहे ,
लोकहित के लिए साधनारत रहूँ।
'असतो मा सदगमय' के महामन्त्र से,विश्वकल्याण की कामना कर सकूँ।
मातु वरदायिनी, ऐसा वरदान दो, लोक मङ्गलमयी सर्जना कर सकूँ।
द्वेष, दुर्भावना पर,नियन्त्रण रहे ,
ऐसा वातावरण, मां हमेशा मिले।
दृष्टि में प्रेम हो,पर प्रलोभन नहीं,
छाँव अमराईयों की, हमें न छलें
लेखनी को भी ऐसी समृद्धि मिले,ताकि तेरा ही गुणगान मैं कर सकूँ।
मातु वरदायिनी, ऐसा वरदान दो,लोक मङ्गलमयी सर्जना कर सकूँ।
प्रेम से छलछलाता, हृदय दो मुझे,
वाणी में सौम्यता,स्वर सरस दो हमें।
आचरण में प्रदर्शन, न आये कभी ,
ऐसे वरदान से, धन्य कर दो हमें।
भाव संवेदनापूर्ण सत्कार्य से,अपने जीवन को सार्थक मैं कर सकूँ।
मातु वरदायिनी,ऐसा वरदान दो,लोक मङ्गलमयी सर्जना कर सकूँ।
वक्त पर दूसरों के काम आ सकूँ ,
मातु इतना ही सामर्थ्य देना हमें।
ज़िन्दगी में निराशा न आये कभी,
सिर्फ खुशियों की सौगात देना हमें।
कर्म से आत्म सन्तोष मिलता रहे,अंत में आपकी ही शरण आ सकूँ।
मातु वरदायिनी,ऐसा वरदान दो,लोक मङ्गलमयी सर्जना कर सकूँ।