कवि हो अथवा चित्रकार,
दोनों ही भावों के आराधक |
इधर लेखनी उधर तूलिका,
एक तरह के दोनों मापक ||
एक तरह के दोनों मापक ||
कवि भावों से कर देता है,
शब्दों का अनुपम श्रृंगार ||
शब्दों का अनुपम श्रृंगार ||
अलंकार, छंदो से उनमे,
भर देता मन के उदगार |
भर देता मन के उदगार |
चित्रकार भी आरेखों पर,
रंगों का करता विस्तार |
रंगों का करता विस्तार |
नैसर्गिक सुषमा का लोभी,
भर देता चित्रों में प्यार ||
भर देता चित्रों में प्यार ||
अंतर्मन की यही भावना ,
चित्रों का रचती है संसार | रस,छंद.संगीत समन्वित,
प्रस्तुत करती है उदगार ||
प्रस्तुत करती है उदगार ||
दोनों की है एक साधना ,
साधन भिन्न साध्य एक |
कर देते हैं निज जीवन में,
साधन भिन्न साध्य एक |
कर देते हैं निज जीवन में,
भावों का मंगल अभिषेक ||
त्रिपाठी जी बहुतसुन्दर अभिव्यक्ति, सुन्दर शव्द व्यंजन है आप की ! आप ने कवी और चित्रकार को अच्छे स्वरुप में रेखांकित किया है
जवाब देंहटाएंकवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। मेरा ब्लॉग है कृपया आपनी लेखनी की अमित रेखाएं मेरे ब्लॉग पर भी खिंच लीजियेगा