जीवन की दुर्गम यात्रा में, कितने मोड़ गुजर जाते ,है |
संघर्षों से निकले स्वर, किस परिभाषा में ढल जाते हैं ||
एक छोर पकड़ी जीवन की, दूजा तुरन्त दूर हो जाता |
क्षणभर की आँख मिचौली, आयाम नया लेकर आता ||
तान्डव- नृत्य देखना पड़ता, कँही कँही सिद्धान्तों का |
कँही प्रदर्शन भी होता है, कुछ जीवन के व्यवहारों का ||
जब कभी समायोजन कर्मो का, उद्देश्यों से हो जाता है |
तब व्यवहार शब्द का उदभव, जीवन शैली मेंआता है ||
इतनी ही यात्रा उन कर्मों को, करने का अवसर मिलता जब|
साध्य और साधन का स्वरूप, तादात्म्य भाव ले पाता तब ||
नैतिकता के सब मानदंड फिर, वहीं प्रकट करने लगते हैं |
सद्सत शुभ व अशुभ तथ्य, का निर्णय भी लेने लगते हैं ||
सुख, दुःख, धर्म,अधर्म सभी,अंतर्मन से टकराते जब |
वे विजय प्राप्ति की इच्छा से, अपनी राग बजाते तब ||
न्यायाधीश बुद्धि बन करके, हल करती है समीकरण |
हितकर क्या है जीवन में, कर देती है तत्काल वरण ||
विश्व चेतना की संसृति में, परहित से दूजा धर्म नहीं |
जीवन में सुख संवृद्धि का, उपकार से ऊंचा कर्म नहीं |
कर्म प्रधान विश्व करि राखा, से बेहतर कोई मंत्र नहीं |
भाग्य कर्म से संचालित, इससे अच्छा कोई तंत्र नहीं ||
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