दिल में उठा तूफ़ान जब, ओठों पर आ गया |
मुद्दत का भटका प्यार की, राहों में आ गया ||
यह प्यास मेरे मन की तो,स्वाती ही बुझायेगी |
अंगों में उठी पीर को,सुधि-रश्मि ही मिटायेंगी ||
पलभर की ख़ुशी तो एक, ख्वाब कही जाएगी |
परिपाक बनकर ह्रदय में,बस शोर मचायेगी ||
चाहत इस डगर पर, याचक बना कभी जब |
तू बन गयी घटा और, मैं चातक ही रह गया ||
दिल में उठा तूफ़ान जब, ओठों पर आ गया |
मुद्दत का भटका प्यार की, राहों में आ गया ||
तुझे उपवनो में खोजा और,भंवरे सा गुनगुनाया |
थक हार गया तब मेरे, यह ध्यान मन में आया ||
भटका हुआ समझकर ही, फूलों ने यह फरमाया |
शायद तुम्हारी चाहत पर, भंवरा कोई मडराया ||
विश्वास की परिधि पर, यह चोट तो थी करारी |
फिर भी मेरे लिए वह तो, एक फूल बन गया ||
दिल में उठा तूफ़ान जब, ओठों पर आ गया |
मुद्दत का भटका प्यार की, राहों में आ गया ||
दमयंती और नल का भी,अभिशाप न था ऐसा |
जो दिन तुम्हारी याद में, लगते महीनों जैसा ||
तूफ़ान बनकर उठता है, सागर में ज्वार कैसा |
निःशब्द होकर पुकारे,स्वाती को चातक जैसा |||
तुम्हें आँखों में बंद कर, आगे बढ़ा हूँ जब जब |
अहसास कोई पीछे से, यह आवाज दे गया ||
दिल में उठा तूफ़ान जब, ओठों पर आ गया |
मुद्दत का भटका, प्यार की राहों में आ गया |||
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