नव जागरण की सुबह तक,दीप यह जलता रहेगा |
सम्पूर्ण धरती का अँधेरा,अब तो निश्चित मिटेगा ||
एक दीपक से हजारों, दीप जब जल जायेंगे,
आसमाँ के तारे भी, छवि देखकर शरमायेंगे |
देव, मुनि, गन्धर्व सब , इस धरा पर नाचेंगे,
अमर ज्योति को सभी,अनुदान देकर जायेंगे ||
यह दीप ही इस पर्व पर, देवत्व का स्वागत करेगा |
नव जागरण की सुबह तक,दीप यह जलता रहेगा ||
युव-जागरण का इसे, सुअवसर अब मान लो,
सदैव आगे बढना है अब, मन में यह ठान लो |
अपरिमित सामर्थ्य को, अब तुम पहचान लो,
तुम अमर ज्योति से,दिव्यता के अनुदान लो ||
युगनिर्माण के आहवान में,फिर यही सम्बल बनेगा |
नव जागरण की सुबह तक ,दीप यह जलता रहेगा ||
एकता की विश्व में, गुन्जित रहे यह भावना,
कितने ही संघर्षों से,क्यों न पड़े अब सामना |
अमर ज्योति से करो,नव सृजन की साधना,
यह पर्व मंगलमय रहे,मेरी यही शुभकामना ||
नव जागरण की सुबह तक,दीप यह जलता रहेगा ||