जब,आऊंगा मैं द्वार तुम्हारे
ले करके कुछ अमृत-वाक |
जल,थल,नभ में भी गूँजेगा,
फिर अपना यह नव प्रवास ||
श्रद्धा ,प्रेम स्नेह कुछ कह लो,
मिलन सुनिश्चित करने को |
विश्वास परिधि का एक बिंदु,
अब पर्याप्त वृत्त को भरने को ||
डरता हूँ मैं तड़ित- चमक से,
स्पंदन में कोई प्रीति जगाकर||
अगवानी कर सको तो करना,
मुस्कानों के ही दीप जलाकर|
तेरे ही घर की खुली खिड़कियां ,
जब हौले- हौले आकर देखूंगा ||
पवन- सदृश दो क्षण रुक करके,
फिर अन्दर तुमको ही देखूँगा ||
यदि सहम गयी तो समझूंगा,
सचमुच मेरी ही रही प्रतीक्षा ||
मौन तपस्विनी सी उदार तब,
तुम ले लेना अग्नि- परीक्षा |
पढ़ लेना मन की भाषा तब ,
जब निःशब्द मुझे पाना तुम ||
कोशिश मैं भी यही करूंगा,
यदि देखूंगा तुमको गुमसुम |
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