झिलमिल दीप पंक्ति से घिरकर ,
जीवन की नव ज्योति जगाओ |
नव उमंग के विस्तृत भू- पर ,
दीपावलि का यह पर्व मनाओ ||
पर्व नहीं संकल्प दिवस यह ,
दिव्य बनो अज्ञान हटाओ |
मुक्त सृजन की शंखनाद को,
मुक्त सृजन की शंखनाद को,
सृहद भाव से उच्च बनाओ ||
उच्च नहीं गतिशील बनाकर,
तुम पौरुष का ही पाठ पढ़ाओ |
दीपों की इस झिलमिल लव में,
विगत शक्ति संबल दिखलाओ ||
संबल नही स्वबल की छाया,
त्रस्त पथिक को सुख देगी |
आत्मशक्ति जाग्रत करने की,
सघन ज्योति निर्झर देगी ||
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