मैला और कुचैला, अपने लिए हाथ में थैला, मुसाफिर एक आता है |
सुबह शाम दोपहर भटकता, जैसे कभी न थकता, दुआएं दे जाता है ||
रोज सुबह घर से निकलेगा, सडकों गलियों पर चलता है |
उसे न मालूम मंजिल अपनी, फिर भी आगे ही बढ़ता है ||
रुक जाता वह वहीँ जहाँ पर, कूड़ों का जमघट दिखता है |
खुश होता फिर उलट पुलट कर, पाता कुछ तो हँसता है ||
झट झोले में रखता, फिर आगे बढ़ता, और मन ही मन कुछ गाता है |
मैला और कुचैला, अपने लिए हाथ में थैला, मुसाफिर एक आता है ||
एक दिन आया कुछ न पाया, अगले दिन फिर भी वह आता |
जो लोग फेंकते तुच्छ समझकर, वह उसके काम आ जाता ||
भर जाता है जब उसका थैला, झटपट घर उसको पहुँचाता |
घरवाली से हंसकर कुछ कहता, उसको कुछ पैसे दे आता ||
घरवाली झट आती, झोला ख़ाली लौटाती, हर रोज यही दुहराता है|
मैला और कुचैला, अपने लिए हाथ में थैला, मुसाफिर एक आता है||
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