कुछ उभर रहीं स्वप्नों की बूंदे |
कोहरामय यह जीवन लगता ,
मन कहता इस नभ को छू लें ||
आत्म तुष्टि का परिचय पाया ,
जिन आँखों की गहरायी में ||
आज मुझे अभिशप्त दिख रहे,
वे क्षण अपनी परछायीं में||
व्यक्त करूं उस अनुभव को ,
किन शब्दों के माध्यम से |
सहज स्वीकृति मिल जाती ,
काश किसी कोरे कागज से ||
इसी प्रतीक्षा में ही प्रतिदिन,
जीवन के पृष्ठ उलटता रहता |
ना जाने किस दिन मिल जाये,
इसी आस में लिखता रहता ||
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