शनिवार, 10 दिसंबर 2011

सोंचें

जिसने देखा है ---
भूख से बिलखते हुए ,
नंगे तन बच्चों को |
अपनी ही आँखों के सामने ,
रोते और बिलखते हुए |
जिसने देखा है------
 अपनी ही भार्या को, 
जीविकार्थ कहीं अन्यत्र --
मजबूरन काम करते हुए ,
जिसने देखा  है-----
 अपने मरणासन्न पिता को,
 औषधि के अभाव में मरते हुए- 
 तथा अपने मित्र को ,
आपत्ति में फंसे हुए |
 और जिस  नारी ने ----
पराजित पति का मुंह देखा है |
उसे नर्क में इससे अधिक, 
 कुछ अप्रिय और कष्ट ---
 देखने को मिलेगा क्या  ?

इतिहास

जब जब देखता हूँ ,
अपने पास की भूमि को ,
ऊपर आकाश को |
और बगल में बैठे हुए ,
किसी असहाय को |
मन टूक हो जाता है |
उठाता हूँ लेखनी,
 लिखने को इतिहास
क्योंकि भविष्य अदृश्य है|
वर्तमान शून्य है |
 केवल अतीत ही, 
दिखायी पड़ता है |
 खोजने लगता हूँ, 
कुछ ऐसी ही घटनाएँ ,
कुछ संस्मरण ,
कुछ प्रतिवेद्नाएं ,
लिखता हूँ इतिहास |
जब हर वस्तु का ---
एक इतिहास होता ही है 
और मैं सिर्फ-------- 
इतिहास ही लिख  सकता  हूँ | 

भग्नावशेष

अद्यतन विलसित भग्नावशेष ,
प्राच्य भारतीय संस्कृति की
गौरवशाली अमूल्य धरोहर है |
इनमें प्रतिस्थापित ;
अभिराम मूर्तियों में ,
तत्कालीन मानव जीवन -
विविध संधियों में मुखरित होकर ,
बिखरता सा लग रहा है |
सभ्यता का यह प्रतिबिम्ब ,
मानवेतर जीवन को --
प्रतीकात्मकता के रंग में ,
जीवन्त कर रहा है |
लगता है ये सभी प्रतीक ,
पार्थिव धरातल /प्रस्तरीय प्रक्रिया से ,
बहुत ऊपर उठकर ,
मनस और मानस की ;
प्रतिष्ठा करती हुई -
इनमें किसी आत्मा का 
प्रवेश करा रहीं हैं |
काश  ;इनकी परिणति को ,
हम भी आत्मसात कर पाते |
कला की इस श्रृखला को
पुन:धरती पर ले आते |
अमूर्त आत्मीयता की 
यह भावना मूर्तिमान हो जाती |
तब परिचय की जिज्ञाषा ,
स्वत : शान्त हो जाती |                                 


अंकुर

इस पुण्य धरा के आंचल में ,
  कितने अंकुर फूटे अबतक |
    मां की निश्छल ममता ने ही ,
       छाती से लगाया है अबतक ||

                                            मैं एक क्षोभ से  अनुमोदित ,
                                              मां धरती का एक  सृजनहार |
                                                मां की ममता की प्यास लिए ,
                                                   मैं उन्माद  भरा हूँ निराधार ||

 अब राह भी न ऐसी कोई है ,
   जिसका राही मैं  बन जाऊं |
    राही भी न कोई  दिखता है,
     जिसका कृतकृत्य  हो जाऊं ||

                                                 बस रहा  एक जीवन- प्रमोद ,
                                                  आनन्द भरा  मधुमय  अपार|  
                                                   पी लूं  उस पावन अमृत को ही  ,
                                                    मिल जाये अगर जीवन कगार |

अंकुर बन करके धरती पर ,
  पल्लवित वृक्ष का रूप  धरूँ |
  मां का इकलौता बेटा बनकर,
    मैं भी धरती का उद्धार  करूं ||


दस्तावेज,

अहसास पाकर मुझमें,
सोया हुआ आदमी जाग पड़ा |
जब वहअपने  अधिकारों का ,
दस्तावेज मांगने लगा |
तब मैं निर्वाक उसे,
एकटक निहारता रहा |
आखिर कहना ही पड़ा ,
उन अधिकारों से -कर्तव्यों का
समीकरण तो कब का टूट चूका है |
जाओ सो जाओ ,
रात अँधेरी है |
आतंक की छाया बहुत ही घनेरी है |
सवेरे सूरज उगने तक ,
मैं दूसरा दस्तावेज,
तैयार कर लूँगा |
और तेरे सिरपर,
उसे चिपका दूंगा |

बजट

विश्व का सर्वाधिक व्यय ,
सैनिक संगठनों और
युद्धास्त्रों के निर्माण में |
देश का सर्वाधिक व्यय ,
 योजनाओं एवं विदेशी निर्यात 
अथवा सम्मेलनों में |
राज्य का सर्वाधिक व्यय ,
अपनी पार्टी की 
योजनाओं के कार्यान्वयन में
और व्यक्ति का सर्वाधिक व्यय  
 विलासिता एवम  फैशन में |
तभी तो औसत व्यय
मानवता के ह्रास को 
प्रतिबिम्बित कर रहा है |