हार नहीं है यह मेरी, जीत की यह पहचान है |
संग में तेरे हार सुनहरे, जीवन का आयाम है ||
पग पग पर साहचर्य तुम्हारा, लेकर आयेंगी खुशियाँ |
जैसे पतझड़ के आँगन में, खिलती हैं फिर से कलियाँ ||
तुम बसन्त की अगवानी में, उसी तरह से आओगी |
बाँहों में भरकर फिर कोई, गीत मिलन के गाओगी ||
समझ नहीं पाता यह ,पतझड़ क्यों बदनाम है |
संग में तेरे हार सुनहरे, जीवन का आयाम है ||
हार नहीं समझूंगा तब तक, जब तक सांसे हैं चलती |
विजय समझता हूँ उसको ,जो हर पल मुझसे कहती||
जब जब खिलते हैं गुलाब, इन काँटों के दरम्यान ही |
तब तब बहार बन आएगी, तेरे जुल्फों की छाँव भी ||
मंजिल तक पहुंचे राही का, अपना अंदाज है |
संग में तेरे हार सुनहरे. जीवन का आयाम है ||
विपदाओं से झुलस चूका है. यद्यपि मन का यह कानन|
हरियाली लायेगी किस्मत.कभी तो बरसेगा कोई सावन ||
याद तुम्हारी जो संग मेरे. मन बहलाने का एक साधन |
इसी सहारे से ही कर लूँगा. किसी तरह मैं जीवन यापन ||
कभी नहीं कह सकता. हर कोशिश नाकाम है |
संग में तेरे हार सुनहरे. जीवन का आयाम है ||
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