यदि चाहो कल्याण मनुज का, आत्म-ज्योति जलाओ |
संस्कृति का अभिषेक अगर, जीवन का लक्ष्य बनाओगे |
तभी प्रकृति में छिपी हुई वह ,दिव्यदृष्टि तुम ले पाओगे ||
विद्या और अविद्या का तुम, अंतर यदि सुलझा पाओगे |
तभी परब्रह्म परमेश्वर का, माया से भेद मिटा पाओगे ||
आत्मोत्सर्ग की आहुति से, दुर्भावों की आग बुझाओ |
यदि चाहो कल्याण मनुज का आत्म-ज्योति जलाओ ||
सत्य अहिंसा का प्रतीक जब, जीवन पथ अपनाओगे |
दुर्दिन में भी अमरवेल की, छाँव सहज तुम ले पाओगे ||
जन-सेवा को अब लक्ष्य बना,जब श्रम के फूल चढाओगे |
आत्मोन्नति की खातिर तुम ,मनुजदेव को पा जाओगे ||
जीवन के उन्माद तोड़कर,आलस्य को दूर भगाओ |
यदि चाहो कल्याण मनुज का,आत्म-ज्योति जलाओ ||
भौतिकता से आध्यात्मिकता का समन्वय रचनाकार है |
सच है मानव के हित में ही यह सब रचित दृश्य संसार है ||
अन्तर्वाह्य प्रकृति के वैभव का, इतना विपुल आगार है |
उपभोग्य और उपभोक्ता का, सामंजस्य ही दृढ आधार है ||
आत्मोन्नति में सदविचार की, दिव्य ज्योति ले आओ |
यदि चाहो कल्याण मनुज का, आत्म-ज्योति जलाओ ||
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