मंगलवार, 28 जून 2011

उत्सर्ग

लिखा हुआ इतिहास जहाँ का, तरकश  धनुष कृपाणों से|
कायरता ठहर सकेगी क्या, उन स्वाभिमान की राहों में ||
               अब तक कितने ही देश भक्त, इस धरती पर बलिदान हुए |
               विश्व- प्रेम की ज्योति जलाकर,  हंस हंसकर कुर्वान हुए ||
देश, प्राण और प्राण, देश जो,  एकार्थ बने हैं अब तक भी  |
जिस जौहर की अग्नि शिखा से, पिघल चुके हैं पत्थर भी ||
                आन बान पर मर मिटने को, संग में केसरिया बाना था |
                युद्ध-भूमि पर मरते मरते जब, दुश्मन ने लोहा माना था ||
धरती कांप उठी थी उस दिन,जब लक्ष्मी ने तलवार संभाली |
हिम्मत तो  हार गये थे दुश्मन, उस अबला की देख  सवारी ||
                  चित्तौड़ व  दुर्ग के वे युद्धस्थल, अब भी दम रखते उतनी हैं |
                  कभी अत्याचार सहन करने की, आदत उनकी नहीं पड़ी है  ||
सदियों से भारत का यह  प्रहरी, शीश उठकर देख रहा है|
किसमे इतनी ताकत है जो, शक्ति- ह्रास को सोच रहा है ||
                    भू -रक्षा के गौरव की खातिर,कितनो ने खून बहाया था |
                    कितनो के श्रम से सिंचित, प्रतिफल हमने ले पाया था ||
मुक्त हुए  है ब्रिटिश पाश से, अर्पित करके तन मन धन |
गांधी सुभाष नेहरू पटेल को, आज  हिन्द कर रहा नमन  ||
                      इतिहास बताता है हमको, हम कितनी यात्रा कर आये हैं |
                       युग-पुरूषों के पद चिह्नों पर, क्या क्या अब तक ले पाए हैं ||
भारत भू-सेवा के क्रम में, नेहरू कुल का बलिदान अतुल |
पिता, पुत्र, पुत्री सब मिलकर, तोड़े  कुछ ऐसे व्यूह प्रबल ||
                       इंदिराजी के देश भक्ति से तो, हम उपकृत सब भारतवासी |
                       जीवन के अंतिम क्षण तक, जन सेवा ही मन में थी ठानी ||
रह गयी अधूरी ही अभिलाषा, बहुतेरे  कार्य अभी बाकी थे|
हरियाली से शून्य अभी भी, कुछ  स्थल यहाँ पड़े ख़ाली थे||
                       अनुचर के विश्वासघात की, परिणति मृत्यु सहज ले आयी |
                        भारत के हर एक उपवन में, दुःख की बदली बनकर छायी ||
तब डूब गये सब भारतवासी, शोक सिन्धु के गहरे तल में |
भारतमाता के करुण-क्रन्दन से,एक लहर है उठी गगन में ||
                         तब दौड़ पड़ा था अखिल विश्व ही, भारत के अश्रु मिटाने को |
                         हतप्रभ थे सब उस  कुर्वानी पर, अपना दिल दर्द दिखाने को ||
अश्रु-सरोवर से उपजे तब, राजीव विहंस करके यह बोले |
हममें भी तो रक्त वही है लो,  मैं तत्पर हूँ  निज कंधा खोले ||
                         एक तरफ माता  की अर्थी थी, तो एक तरफ शासन का भार|
                          सक्षम हैं दोनों  दृढ कंधे अब,  हम कभी नहीं खा सकते हार ||
हम सब भी हैं संतान भरत की, उन जैसा अपना भी सपना |
बचपन में ही  केहरि के मुख से, कर लेना दांतों की गणना ||
                       आपत्तिकाल में तो साहस की, सदा सफलता करती है पूजा |
                       जीवन में आगे बढने का, इससे बढ़कर कोई मार्ग ना दूजा ||
ऐसे धैर्य और साहस का परिचय, राजीव दे रहे थे उस क्षण |
पुलकित थी भारत माता भी, रोमांचित धरती के कण-कण ||
                      उद्वेलित भारत  जन मन को, ऐसे नायक की ही रही कामना |
                       राष्ट्र की उन्नति में जिसकी सेवा, देश-भक्ति की भरे भावना ||
इंदिराजी के त्याग व तपस्या को,मानों कोई मिल गयी दुआ|
जन मत से इस वीर पुत्र का, तब राजतिलक सोल्लास हुआ||
                        राज्यासन  का तो गर्व नहीं था, जन -सेवा के उन आदर्शों पर |
                        शांति -मार्ग के अनुयायी  बन, नेहरू के पथ का किया वरण||
सत्ता निज हाथों में लेते ही, कुछ वे विपदाओं से घिर गये तुरत |
पंजाब असम समझौतों पर भी, वे अग्नि-परीक्षा से गये गुजर ||
                            राष्ट्रीय-एकता की खातिर हर एक कोशिश में वे दिखते तत्पर |
                            धर्म जाति से  परे ऍक राष्ट्र की, नव-संरचना में  दिखते अग्रसर||
तब विश्व शांति के लिए उन्होंने,अखिल विश्व का भ्रमण किया |
परमाणु युद्ध के खतरों से भी,निज मुक्ति हेतु कुछ पहल किया ||
                            युवकों में आशा दीप जला कर, शिक्षा में कर दी नव परिवर्तन |
                            नव भारत के नव निर्माण हेतु, कुछ प्रस्तुत किये नये अवसर ||
मुस्कानों से उनके सुधा टपकती, संभाषण में दिखते शक्तिमान|
 मजदूरों के थे परम हितैषी, और वृद्ध जनों का करते सम्मान ||
                            पंचायतीराज के अनुशासन का भी, जो सपना गांधी ने था देखा |
                             उनको संवैधानिक मूल्य सहित, जन जन तक राजीव ने भेजा ||
रामराज्य का यह नव प्रयोग, तब गाँवों में एक लहर ले आयी |
इक्कीसवीं सदी की देहली पर, वह दस्तक बन कर तब आयी ||
                             विज्ञानं धर्म और संस्कृति में भी,उन्नति के मार्ग प्रशस्त किये|
                             मंगल चन्द्र नक्षत्रों पर भी, अब मानव के मंगल अभिषेक किये||
कृषि उद्द्योग विकासों में भी, सौ गुनी सफलता लेकर  आये हैं |
वैज्ञानिक कृषि- संयंत्रों से तो, वे पृथ्वी को स्वर्ग बना डालें  हैं ||
                          इक्कीसवीं सदी में ले चलने को,  जन जन में जागृति लाया है |
                          साध्य नहीं बदला फिर भी, साधन में नव परिवर्तन आया है ||
गुटनिरपेक्ष सिद्धांतों को भी, व्यावहारिकता का जामा पहनाया |
 देश विदेश भ्रमण कर करके, बस मैत्री का  ही सन्देश सुनाया ||
                            भुला नहीं सकते कदापि हम, वह पथ जो  हमको  है दिखलाया |
                             नव युवकों के आशा दीप बने, और निर्बल को अधिकार दिलाया ||
युग पुरुष थे युग क्रांति के थे, और भारत- भविष्य के निर्माता भी |
वे विश्व शांति के प्रबल समर्थक,और संचार क्रांति के उदगाता भी ||
                          नेहरू के सपनों का वह नव भारत, तब साकार रूप लेने वाला था |
                           पंचशील  के उन सिद्धांतों की  भी, सम्यक समीक्षा कर डाला था ||
शान्ति-दूत राजीव निडर होकर, तब  देने चले शान्ति -सन्देश |
राष्ट्रीय-एकता की खातिर वे,युवकों में जगा रहे ऍक नव उन्मेष ||
                             इतने में हिंसा मुखर हो गयी,और दानवता ने भी की अट्टहास |
                             बापू की समाधि भी फट करके,अब छूने लगी अनन्त आकाश ||
इक्कीस मई  की कालरात्रि जब, मानवता पर ऐसे की प्रतिघात |
तब बिलख पड़ी भारतमाता,  और कलुषित हुआ पुन: इतिहास ||
                              धूमकेतु सा जो उदय हुआ था, राजनीति के इस  नीलगगन में |
                              अस्त हुआ भी तो ऐसे ज्यों लगता, उल्का टूट गया कोई  नभ से ||
शोकाकुल अपना परिवार देश तज,  चिरनिद्रा में ली पूर्ण विराम |
काश ?स्वप्न सार्थक हो जाते, मिल जाता उनको वांछित आयाम ||
                              अमर रहेगा उत्सर्ग तुम्हारा, और अमर रहेगा  अनुपम बलिदान |
                               करते अब हम सब भारतवासी, श्रद्धा सुमनों से शत शत प्रणाम ||  

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