अंतर्मन की व्याकुलता से,
जब जब ओंठ फडकते हैं |
यातो कविता के स्वर फूटें,
या आंसू बनकर वे बहते हैं ||
जितने आंसू बहे अब तक,
उतने ही स्वर बन कर फूटे |
अरमानों की इस देहली पर,
अबतक उतने ही सपने टूटे ||
स्मृतियों के उदभावन से,
जो आंसू बन कर बहते हैं |
अरमानों के दीप सजाये,
स्मृतियों की पूजा करते हैं ||
परिपाक सदृश कभी कभी वे ,
अंतर्ज्वाला भी बन जाती है |
खट्टे मीठे अनुभव से कभी
मधुबाला भी बन जाती है ||
अंतर्भावों के नर्तन से जब,
स्वर और ताल संवरते हैं|
अविरल आंसू की धारा में,
वे मोती बन कर बहते हैं||
जीवन का एक पृष्ठ विधि ने ,
शायद छोड़ दिया था कोरा |
दे करके एक कलम हाथ में,
जीवन के इस उपवन में छोड़ा ||
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