शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

प्रिये तुम ,जब होती हो पास !

प्रिये तुम ,जब होती हो पास !
     उर उपवन में भर देती तुम ,जैसे कोई मधुमास !!                                                                                             जीवन की इस बगिया में छा जाता नव उल्लास !
प्रिये तुम ,जब होती हो पास !


      नूपुर ध्वनि जब जब सुनता ,भावुक मन करता है नर्तन !
      नेह छलकती आँखों में ही ,कर लेता हूँ तेरा प्रिय -दर्शन !!
      तन  मन महका देती हो तुम ,जीवन में भरती उल्लास !
  प्रिये तुम ,जब होती हो पास !
  
        साँसों में मलयानिल घुलता ,कानों में लगता कुछ कहता !
        जीवन को स्पंदित करके ,प्राणों को अलि गुञ्जित करता !!
        तेरी पग ध्वनि से मिलता है ,अब सुस्मृति को उच्छ्वास !
     प्रिये तुम ,जब होती हो पास !

        यादें मधुर मधुरतम बनती,जब भी करता तेरा गुणगान !
        नख शिख रूप दृष्टिमय होकर,छलकाते कितने अरमान !!
        मन उपवन में छा जाता तब ,बासन्ती स्वप्निल मधुमास !!
     प्रिये तुम ,जब होती हो पास !

        बैरिन पायल की रुनझुन सुन,मेरा मन नाचे मयूर बन !
        चरणों की रक्तिम आभा भी,महकाता है मेरा तन  मन !!
        प्रेमाकुल मन को होता तब,तेरा चुपके चुपके से आभास !!
      प्रिये तुम ,जब होती हो पास !