जहाँ जलाये ज्ञान- दीप हम, उस मंदिर को कोटि प्रणाम |
गंगा यमुना सरस्वती का, यदि पुनीत संगम कोई |
भारद्वाज की तपोभूमि का, यदि प्रतीक स्थल कोई ||
वही प्रयाग विश्वविद्यालय है, इतर नहीं इससे कोई |
ज्ञान और विज्ञान ,कला, तीनों की निधि इसने बोई ||
गूंजे सदा कीर्ति धरती पर,अमर रहे इसका गुणगान |
जहाँ जलाये ज्ञानदीप हम,उस मंदिर को कोटि प्रणाम ||
लाल पद्मधर अमर कर गये, कुर्बानी में अपना नाम |
कर्म- भूमि ऐसे वीरों की, देश-भक्त जिनका उपनाम ||
कर्म- भूमि ऐसे वीरों की, देश-भक्त जिनका उपनाम ||
पूर्ण क्रांति का बिगुल बजाय ले स्वतंत्रता के अरमान |
स्वतंत्रता के दीवाने थे, ऐसे इसके कितने वीर तमाम ||
राष्ट्र-भक्ति से शिक्षा का भी, जोड़ा एक नया आयाम |
जहाँ जलाये ज्ञान दीप हम,उस मंदिर को कोटि प्रणाम ||
राजनयिक, कवि, वैज्ञानिक, दार्शनिकों की क्या कहना |
अखिल विश्व में छाये ऐसे,आसान नहीं है संख्या कहना ||
संत रानडे नीलरतनधर, को अब भी यह कहता अपना |
साकार किये ऐसे कितनों ने, अपने जीवन का सपना ||
विद्वतगण में है प्रसिद्ध यह ,पूरब के आक्सफोर्ड समान |
जहाँ जलाये ज्ञान- दीप हम, उस मंदिर को कोटि प्रणाम ||
उनका है सौभाग्य यहाँ, शिक्षा का जिसने लाभ लिया |
धरती के कोने- कोने में, जब भी इसका नाम लिया ||
दर्शन, धर्म ,संस्कृति का ,दुनिया भर को दान दिया |
राजनीति विज्ञान व्यवस्था, में सबका आह्वान किया ||
भाषा, भाव, जाति का अंतर, दूर करे यह केंद्र महान |
जहाँ जलाये ज्ञान दीप हम, उस मंदिर को कोटि प्रणाम ||
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