नवसृजन की मधुर ध्वनि फिर बजाओ |
अब प्राणमय हो जाएँ शायद गीत मेरे | |
गीत और संगीत का संयोग मिल जाये अगर |
क्लांत मन में फिर वही चेतना जग जाएगी ||
भूले गीतों को कदाचित मिल सके यदि वेदना |
तार वीणा के स्वयं ही सुर-साधना बन जाएगी ||
अवरोह से आरोह तक ध्वनि निकालो |
अब संगीतमय हो जायें शायद गीत मेरे ||
शब्दों की यह श्रृंखला जो छंद बनती जाती है |
काव्यमय तो हो गयी पर गीतिका अब भी नही ||
जब चूम ले होंठों से कोई मुरली समझ करके इसे |
फूंक दे नवचेतना भी इतनी ही अपेक्षा अब रही ||
गोपिकाओं की विरह गाथा तो सुनाओ |
अब प्रेममय हो जायें शायद गीत मेरे ||
अब प्रेममय हो जायें शायद गीत मेरे ||
थर थराते होंठो से जब जब शब्द कोई भी फूटता है |
व्यथा की हर एक कथा ही काव्यमय हो जाती है ||
सत्यम शिवम् सुन्दरम शास्वत चिरंतन सत्य है ||
काव्य सरिता का मृदुल जल अमृत बनती जाती है ||
तुम अनहत नाद को फिर से सुनाओ |
अब प्राणमय हो जाएँ शायद गीत मेरे | |
बहुत सुन्दर गीत.आभार.
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