रवि-रश्मि प्रताड़ित दिवस ढला,
दृग-पथ पर पथिक न आ पाया |
कब प्राण-पवन उन्मत्त हो चला,
झोंका भी तनिक न लग पाया |
स्तब्ध दिशा में कोई एक लहर,
आकर यह दृग -जल बरसायी |
असहाय आज फिर भारत मां,
निज बेटे की अर्थी ले लायी |
दुर्दिन का दारुण यह विक्षोभ,
मानवता पर प्रतिघात किया |
लक्ष्य अभी तो बहुत दूर था ,
तू शीघ्र तोड़ क्यों सांस दिया |
तुम युग- पुरुष युग- क्रांति के थे,
भारत- भविष्य के तुम निर्माता |
छात्र आन्दोलन के तुम सूत्र-धार,
कृषक-वर्ग के भी अप्रतिम त्राता ||
समग्र- क्रांति की जो रणभेरी,
तूने बजा दिया इस भारत में |
निश्चित तेरे उन पद-चिह्नों पर,
पुष्पित होगी विप्लव वन में ||
निज मातृभूमि के गौरव पर,
तन- मन-धन कुरवान किया |
निर्विघ्न रहे वह मार्ग सदा ही,
जिस पर तूने आहवान किया ||
जयप्रकाश सा जो दीप बुझा,
अब तमसावृत भारत देश हुआ |
पदचिह्नों का अनुकरण मात्र ही ,
अब संकल्प हेतु अवशेष हुआ ||
हे देवात्मा, किस तरह नमन ,
करके श्रद्धांजलि शत- शत दूं |
चिर शांति मिले बस चाह यही,
तुम मुक्त बनो, मै श्रद्धावनत हूँ ||
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