तेरे इन्कार में भी जब कभी, इकरार दिखता है |
तभी आशिक मुहब्बत का,तेरा बीमार दिखता है ||
मैं तो इंसान हूँ इल्जाम कोई, लग भी सकता है|
फरिश्ता भी तुम्हे देखे तो, वह बेजार दिखता है ||
हकीकत में बदलना ख्वाब को,मुश्किल तो है लेकिन |
इन्हीं ख्वाबों में ही अक्सर, मेरा संसार दिखता है||
तेरी मुस्कान के पीछे, तेरी नजरों की वह थिरकन |
शरारत हो भले मुझको, बेतकल्लुफ प्यार दिखता है||
जिसे मैं प्यार की मंजिल, समझ बैठा हूँ भूले से |
उसी के हाथ मेरे कत्ल का, अब आसार दिखता है ||
अदाएं इश्क की जब जब, रूबरूं होती हैं नजरों से |
इबादत के लिए कोई रूप, ही साकार दिख जाता ||
मेरी गजलों को जो "जिज्ञासु"तुमने स्वर दिया होता |
मेरा हर शेर ही मेरे प्यार का, इक किरदार बन जाता ||
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