मधुकर सा मधु जीवन मेरा |
रंगविरंगे इस उपवन को समझ लिया जीवन कुटिया |
पुष्प-शयन को अति आतुर मधुरस का भी मैं रसिया ||
मैं श्वासों में उच्छ्वास छिपाकर कहलाता बहुरुपिया |
गीतों से संगीत सजाकर उपवन में संजोये हूँ कलियाँ ||
ऐसा सरस तपस्वी निशिदिन, लेता इक नया बसेरा |
मधुकर सा मधु जीवन मेरा ||
कठिन कर्म ,कोमल मन मेरा, श्याम वर्ण तनधारी |
असंख्य मृदुल सुमनों से सुरभित जीवन अनुगामी ||
कलियों का सहचर हूँ फिरभी पुष्पों का मैं अनुरागी |
मधुमय गीत सुनाता फिरता अब कौन कहे बैरागी ||
पंखुड़ियों का बन्दी बनकर, खोजूं नित नया सवेरा |
मधुकर सा मधु जीवन मेरा |