बुधवार, 8 मार्च 2017

बेवफाई

 बहुत याद आई तेरी बेवफाई। 
                                  जमाना था वह भी जो तू हौले हौले ,
                                  मेरे कानों में मीठे रस घोलती थी। 
                                  मेरी आरजू ही थी तेरी हर तमन्ना,
                                   निगाहें सदा बस तुझे खोजती थी। 
तुझे दर्द दिल की दवा मान करके ,
खा करके चोटें उम्र सारी  बिताई।--- बहुत याद आई 
                                                    नजरों से ओझल हो साये भी जिनके ,
                                                    क्यों आहट उन्हीं की है पड़ती सुनाई। 
                                                     चाहत की मंजिल को छूने के पहले ,
                                                      सौगात में मिल गयी क्यों जुदाई। 
प्रतीक्षित नयन मेरे प्यासे के प्यासे ,
सुनाएँ कहाँ तक समय की सचाई। ---बहुत याद आई --
                                                     भुला बैठा था सरे गम जिन्दगी के ,
                                                      जब से मेरी जिन्दगी तुम बनी हो। 
                                                      चलता रहा जिन्दगी के सफर पर ,
                                                      हर मोड़ पर लगता तुम ही खड़ी हो।
हकीकत को सपना कहने के पहले ,
आखिर मुझे मिल गयी रुसवाई। --बहुत याद आई --  

मंगलवार, 7 मार्च 2017

अलविदा मत कहो

गीत मेरे अधूरे हैं ,सचमुच अभीतक  ,
स्वर बनो तुम,  मैं शब्द बन जाऊँगा। 
मन तेरा राधिका, बन सके तो कहो ,
मैं तुम्हारा ही, घनश्याम कहलाऊँगा। 

  वंशी बनकर अधर, पर शयन कर सको ,
   प्रेम -सुधि खुद, हृदय में समा  जायेगी।
  प्रीति की रीति यह , कोई  पहेली नहीं  ,
  सारी  दुनिया ही, वृजधाम बन जायेगी।

जब से सुन्दर दिखा, मन तुम्हारा मुझे ,
चाहत बढ़ने लगी, जीत लूँ मन तेरा। 
आपकी मुस्कराहट, पर फिसल तभी ,
खो गया आपकी, प्रीति  में मन मेरा।

 एक गुजारिश मेरी, आपसे बस यही 
 गीतों में मेरे अपने, मधुर स्वर भरो।
तेरी यादों के संग संग, ही जी लूंगा मैं,
 मेर गीतों को तुम, अलविदा मत कहो।  

बिडम्बना

विरासत में मिलते हैं रिश्ते 
मित्रता नहीं। 
मित्र तो हम स्वयं चुनते हैं। 
अपनी इच्छाओं के अनुरूप। 
सुख -दुःख का सहभागी 
एकमात्र हमसफ़र। 
मित्र ही है जिसे 
अपनी व्यथा सुनाकर 
निश्चिन्त हो लेते हैं। 
जब कभी भी तुषाराघात 
होता है मैत्री पर ,
संकट के बादल घिरते हैं। 
बिजली भी चमकती है। 
तभी किसी अनहोनी 
का आगमन होता है। 
हर सम्भव कोशिश कर 
मित्र को ही मित्र बनाये रखना 
हमारा एकमात्र उद्देश्य हो ,
तभी मित्रता हमारे लिए 
वरदान सिद्ध हो सकती है। 

कोई तीसरा

मौसम की तरह ,
हम और हमारे अभिमत
बदलते रहते हैं।
कल तक नाज था
जिन्हें अपनी दोस्ती पर ,
वे कैसे हो जाते हैं -
एक दूसरे के विरुद्ध।
यह गिरगिटी बदलाव
क्यों और कैसे आता है।
या कोई तीसरा
उन दोनों को भटकाता है।
विश्वास एवम प्रेम की
परिणति है दोस्ती।
काश दोनों मित्र
किसी तीसरे के षड्यंत्र को,
बेनकाब करते रहें
और हमेशा एक दूसरे की
बाँहों में बांहें डालकर
आगे बढ़ते रहें।