जयति जय भू-भारती |
जयति जय भू- भारती ||
उत्तर में नगराज हिमालय |
दक्षिण में लंका स्वर्णपुरी ||
पूरब में बंगाल समुन्नत |
पश्चिम का सागर प्रहरी ||
व्योमथाल से नित प्रभाकर|
निशिदिन उतारे आरती ||
जयति जय भू-भारती |
जयति जय भू -भारती ||
जयति जय भू -भारती ||
सागर नित तेरे पग धोकर,
ले रहा हिलोरे मन ही मन |
लहरे कल कल गीत सुनाती,
अर्पित करती तन-मन धन ||
पंचनद की अमृत- धारा |
संजीवनी बन दुःख मिटाती ||
जयति जय भू-भारती |
/जयति जय भू- भारती ||
/जयति जय भू- भारती ||
ऋषियों की यह है तपोभूमि |
विद्या का अनुपम केंद्र यंहा ||
गीता पुराण उपनिषद वेद |
स्मृति करत्ती अभिषेक यंहा ||
ऐसी पुण्यमयी वसुधा |
तू धन्य भारत भारती ||
जयति जय भू-भारती |
जयति जय भू- भारती / |
विश्व को संस्कृति दिया |
जयति जय भू- भारती / |
विश्व को संस्कृति दिया |
मनुजता के रक्षार्थ ही ||
आज भी गौरव बढाती |
शिशिर चंद्राकार सी ||
सभ्यता को संस्कृति |
के हाथ से तू संवारती||
जयति जय भू-भारती |
/जयति जय भू- भारती ||
/जयति जय भू- भारती ||
देवतागण जन्म लेकर |
स्वर्ग का वैभव भुलाते ||
शस्य श्यामल गोद में |
आकर महा आनंद पाते ||
अखंड भू- पर आज तेरी |
जय- घोष है हुंकारती ||
जयति जय भू-भारती |
जयति जय भू -भारती ||
जयति जय भू -भारती ||
आज जो यह जय पताका |
गगन तक फहरा रही है||
विश्व भर में एकता की |
शांति पाठ पढ़ा रही है ||
अनेकता को एकता के |
सूत्र में नित बांधती||
जयति जय भू-भारती |
जयति जय भू- भारती ||
जयति जय भू- भारती ||
/ आदि संस्कृति की प्रतीक |
मानवता का अविरल प्रवाह ||
धर्मं जाति के भेदभाव को |
जंहा न मिलाती कोई राह ||
कोटि कोटि कंठो से वाणी |
तब एक स्वर में सराहती ||
जयति जय भू- भारती |
जयति जय भू- भारती | |
जयति जय भू- भारती | |
धर्मं भाषा जाति बहुबिध |
एकता फिर भी बनी है ||
गूंजता है एक ही स्वर |
स्वर्ग धरती पर यंही है ||
वसुधैव कुटुम्बकम की |
भावना नित जो पालती ||
जयति जय भू-भारती |
जयति जय भू- भारती ||
जयति जय भू- भारती ||
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