कौन तुम डूब रहे तैराक,
तेरे तो हाथ पैर निस्तब्ध |
तेरे तो हाथ पैर निस्तब्ध |
किस वस्तु-खोज में लीन,
यहाँ जलसतहों से अनुबद्ध ||
यहाँ जलसतहों से अनुबद्ध ||
क्या कहते ईश्वर की खोज,
लक्ष्य है जीवन का अनुमोद |
लक्ष्य है जीवन का अनुमोद |
खोजा है जग में खूब मगर,
पा सका न वह अभिश्रोत ||
पा सका न वह अभिश्रोत ||
प्रश्न तू पूंछ रहा है अतिगूढ़,
जगत का स्रष्टा कौन प्रसिद्ध |
क्या कहता है तू मतिमूढ़,
रूप,छवि,ज्ञान,कर्म अरुसिद्ध ||
रूप,छवि,ज्ञान,कर्म अरुसिद्ध ||
यह भूल समझकर अपनी,
कर लो आत्मा पर विश्वास |
कर लो आत्मा पर विश्वास |
बुद्धि से दूर अदृश्य, अज्ञेय,
बना जो जीवन का परिहास ||
बना जो जीवन का परिहास ||
वह प्रतिपाद्य विषय से दूर,
ज्ञान की सीमा के भी पार|
ज्ञान की सीमा के भी पार|
जगत का है अज्ञात रहस्य,
सृष्टि का फिर भी है आधार ||
सृष्टि का फिर भी है आधार ||
वस्तु है मात्र जगत में ज्ञात,
बनी जो केवल आत्म-संवेद |
बनी जो केवल आत्म-संवेद |
तेरे ईश्वर का कोई प्रतिरूप,
नहीं है दृश्य जगत में खेद ||
नहीं है दृश्य जगत में खेद ||
स्वप्न में जो बना अदृश्य,
कल्पना क्या देगी आकार |
कल्पना क्या देगी आकार |
सोच लो तुम होकर मौन,
जगत का पा लोगे आधार||
जगत का पा लोगे आधार||
चल जल सतहों से हो दूर,
बना इन्द्रिय को श्रमशील|
बना इन्द्रिय को श्रमशील|
तभी वह सुलझेगा अज्ञेय,
बनो आत्म- संवेदनशील||
बनो आत्म- संवेदनशील||
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