गुनगुनाता हूँ जो गीत मैं हर घड़ी |
कह रहा अब वही भूल जाओ मुझे ||
सच है रोते हुए धरती पर आया था |
मां की थपकी ने हंसना सिखाया मुझे ||
खेलते हंसते बचपन में ना जाने कब |
प्यारा लगने लगा गुनगुनाना मुझे ||
जिन्दगी चल रही है जिसके सहारे |
कह रहा अब वही भूल जाओ मुझे ||
दुनिया में लोग मिलते बिछुड़ते रहे |
कारंवा में कुछ अपने पराये लगे ||
जब सफ़र में कोई एक प्यारा लगा |
दौड़कर उसके पीछे हम यूं चल पड़े ||
प्रेरणा गुनगुनाने की जिससे लिया |
कह रहा अब वही भूल जाओ मुझे ||
जिन्दगी का सफ़र तो कठिन था मगर |
मुश्किलों ने भी हंसना सिखा ही दिया ||
मेरे गीतों को जो संगीतमय कर चली |
उसने जीवन को सुहाना बना ही दिया ||
जिसकी हंसी पर मुस्कराता हूँ मै |
कह रहा अब वही भूल जाओ मुझे ||
गीत की लय सुवासित हुई जिस घड़ी |
प्रेरणा बनकर सांसो में वह घुल गयी ||
सत्य ,शिव और सुन्दर परखते हुए |
शब्द संचित हुए लय मुखर हो गयी ||
जिसकी आहट से झंकृत हैं स्वर मेरे |
कह रहा अब वही भूल जाओ मुझे ||
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें