मंगलवार, 21 जून 2011

रोशनी

    हम  जला  निज झोपड़ी, आवाज भी देते रहेंगे /
    रोशनी जब तक तुम्हारी,खिड़कियाँ न चूम लें //

                 साधन नहीं कुछ और था, सचमुच हमारे पास में /
                 महल यदि होता तो इतनी, रोशनी हम दे न पाते //

    अच्छा हुआ विधि ने हमें दी, झोपड़ी तुमको महल /
     वरना तनिक सी रोशनी को, तुम तरस जाते यंहा //

                     किन्तु यह अफ़सोस है, पीछा न छोड़ेगा अँधेरा /
                     फिर शाम होते ही तुम्हारे,महल में लेगा बसेरा //

    तुम फिर कहोगे रोशनी के, लिए कोई घर  जलाओ |
    करुण क्रंदन कर रही इस, भीड़ को तिनका बनाओ ||

                       तुम विवश कर दोगे मुझे, फिर ढूढने को रोशनी |
                       क्योंकि आदत ही तुम्हारी, बन गयी है इस कदर ||

   फिर जलेगी झोपड़ी, तुम हाथ सेकोगे कहोगे |
   वाह दो पल ही सही यह, रोशनी ही रोशनी है ||

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