हम जला निज झोपड़ी, आवाज भी देते रहेंगे /
रोशनी जब तक तुम्हारी,खिड़कियाँ न चूम लें //
साधन नहीं कुछ और था, सचमुच हमारे पास में /
महल यदि होता तो इतनी, रोशनी हम दे न पाते //
अच्छा हुआ विधि ने हमें दी, झोपड़ी तुमको महल /
वरना तनिक सी रोशनी को, तुम तरस जाते यंहा //
किन्तु यह अफ़सोस है, पीछा न छोड़ेगा अँधेरा /
फिर शाम होते ही तुम्हारे,महल में लेगा बसेरा //
तुम फिर कहोगे रोशनी के, लिए कोई घर जलाओ |
करुण क्रंदन कर रही इस, भीड़ को तिनका बनाओ ||
तुम विवश कर दोगे मुझे, फिर ढूढने को रोशनी |
क्योंकि आदत ही तुम्हारी, बन गयी है इस कदर ||
फिर जलेगी झोपड़ी, तुम हाथ सेकोगे कहोगे |
वाह दो पल ही सही यह, रोशनी ही रोशनी है ||
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