मंगलवार, 21 जून 2011

आजकल

चाँद पर पहरा बिठाया, आसमां ने आजकल |
टिमटिमाना छोड़  बैठे हैं,  सितारे आजकल ||

                चांदनी  गुमसुम हुई  है, चाँद की खामोशी पर |
                मूक चातक के नयन ,पथरा गए हैं आजकल ||

  कोई हवा ऎसी सियासी, अब बह रही आजकल |
  लगता किसी तूफ़ान की, आहट का है आकलन ||
  
                    सच है ग्लोबल वार्मिंग से, चाँद कुछ आह्त हुआ |
                     जिनकी आहों से  झुलसती, चांदनी है आजकल ||

देखकर जिस चांदनी को, मन प्रफुल्लित हो रहा है |
मन की बेचैनी सिमटकर, ओंठो पर लायी है खुशी ||

                   आज उनको हो गया क्या, कुछ तो बतलाये कोई |
                   लग रहा अब चाँद सूरज,  बन  गया है आजकल ||  

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