उठाना नहीं था अगर मुख से पर्दा|
मुझे महफिलों में बुलाया न होता ||
चुराना था यदि आँख मुझसे तुम्हें |
आँख में आँख ही मिलाया न होता ||
छीननी थी अगर मुस्कराहट मेरी |
पहले ही हंसना सिखाया न होता ||
बुझाना नहीं था अगर आपको तो |
आग दिल में मेरे लगाया न होता ||
गुजर जाते दिन आपके भी बिना |
प्यार की राह में बुलाया न होता ||
इजाजत न होती तो मैं भूलकर भी |
मधुर गीत ओठों पर लाया न होता ||
शिकायत न होती कोई इस कदर से|
आप हंसकर अगर बुलाया न होता ||
चलो यह भी अनुभव रहा इक नया |
सुना था कि अपना पराया न होता ||
मगर आज समझा कि दोषी हूँ मैं भी|
हाथ अपना अगर खुद बढाया न होता ||
आज इतना न कहता मजबूर होकर |
मुझे नजरों से बस गिराया न होता||
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