रविवार, 17 जुलाई 2011

गजलें

उठाना नहीं था अगर मुख से पर्दा|
 मुझे महफिलों में बुलाया न होता ||

 चुराना था यदि आँख मुझसे तुम्हें |
 आँख में आँख ही मिलाया न होता ||

 छीननी थी अगर मुस्कराहट मेरी |
 पहले ही हंसना सिखाया न होता ||

 बुझाना नहीं था अगर आपको तो |
 आग दिल में मेरे लगाया न होता ||

 गुजर जाते दिन आपके भी बिना |
 प्यार की राह में बुलाया न होता ||

 इजाजत न होती तो मैं भूलकर भी |
 मधुर गीत ओठों पर लाया न होता ||

 शिकायत न होती कोई इस कदर से|
 आप हंसकर अगर बुलाया न होता ||

 चलो यह भी अनुभव रहा इक नया |
 सुना था कि अपना पराया न होता ||

 मगर आज समझा कि दोषी हूँ मैं भी|
 हाथ अपना अगर खुद बढाया न होता ||

 आज इतना न कहता मजबूर होकर |
 मुझे नजरों से बस गिराया न होता||
                         

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