शनिवार, 16 जुलाई 2011

सितम

खुदा जाने क्या  क्या  सितम अब  सहेंगे ,
इस नफरत की दुनिया में हम कैसे रहेंगे |

     जमीं  आसमां  सभी  सुर्ख लग रहा है ,
     अँधेरे में जुगनू का डर सा लग रहा है |
     बिना बादलों की यह बरसात कैसी है ,
     मुझे कोई साजिश का शक हो रहा है||

हम  अपने  ही  साये से  कब  तक  डरेंगे,
इस नफरत की दुनिया में हम कैसे रहेंगे |
            
     अभी तक जो अपने थे अब पराये  हुए,
     इस जमाने को आखिर क्या हो गया है|
    खामोश दिल की वह धड़कन कहाँ तक,   
     बयाँ  कर  सकेगी अब डर लग  रहा है||


अब अलगाव के तूफ़ान  कब  तक  बहेंगे,
इस नफरत की दुनिया में हम कैसे रहेंगे| 

    एक साथ चलना, हंसना मुनासिब नहीं है,
    सरहद  की  रक्षा  जो  करते  हैं  संग  संग |
    मंदिर या  मस्जिद  की  नफरत  बढाकर,
    तैय्यार  करते  हैं  क्यों  एक  नया  जंग||

  हम गुमराह हो कब तक लड़ लड़ मरेंगे,
 इस नफरत की दुनिया में हम कैसे रहेंगे|  

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