रविवार, 24 जुलाई 2011

आस्था के आयाम

हार कर भी जीत  का, उत्सव मनाते जाइये ,
जिन्दगी में हर घड़ी, खुशियाँ मनाते जाइये |

                 आस्था के तो बहुत से, आयाम अब भी रिक्त हैं |
                 मनुज में ही दिव्यता की, संभाव्यता सम्पृक्त हैं|| 
                 तुम साधना के मार्ग पर, हार समझो जब कभी|
                 सोचना तुम साध्य तक, का यत्न है बाकी अभी||
  
हर कदम पर विजय का,  गीत गाते जाइये,
जिन्दगी में हर घड़ी, खुशियाँ मनाते जाइये | 

                तुम ना बनाओ जिन्दगी को, ईंट की दीवार सी |
                नित बदलते रूप इसके, शिशिर चन्द्राकार सी||
                मार्ग में संघर्ष जितने भी हों, वे नजर आते रहें |
               अपने ही सामर्थ्य में वे, परिपूर्णता भी लाते रहें||

 हार तो एक विश्राम है, थोडा वहां रुक जाइए,
  जिन्दगी में हर घड़ी, खुशियाँ मनाते जाइये |

              कल्पनाओं का  घरौंदा, रेत पर जब  बनता है |
              खेलकर कुछ क्षण उसे,खोना अच्छा लगता है||
              वासनाओं के दमन से, दिव्यता खोजो उसी में|
              प्रेम की उद्भावना को, भक्तिमय देखो उन्हीं  में || 

  तुम कल्पना में कर्म का, उद्भव दिखाते जाइए, 
  जिन्दगी में हर घड़ी,  खुशियाँ  मनाते  जाइये |  

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