हार कर भी जीत का, उत्सव मनाते जाइये ,
जिन्दगी में हर घड़ी, खुशियाँ मनाते जाइये |
आस्था के तो बहुत से, आयाम अब भी रिक्त हैं |
मनुज में ही दिव्यता की, संभाव्यता सम्पृक्त हैं||
तुम साधना के मार्ग पर, हार समझो जब कभी|
सोचना तुम साध्य तक, का यत्न है बाकी अभी||
हर कदम पर विजय का, गीत गाते जाइये,
जिन्दगी में हर घड़ी, खुशियाँ मनाते जाइये |
तुम ना बनाओ जिन्दगी को, ईंट की दीवार सी |
नित बदलते रूप इसके, शिशिर चन्द्राकार सी||
मार्ग में संघर्ष जितने भी हों, वे नजर आते रहें |
अपने ही सामर्थ्य में वे, परिपूर्णता भी लाते रहें||
हार तो एक विश्राम है, थोडा वहां रुक जाइए,
जिन्दगी में हर घड़ी, खुशियाँ मनाते जाइये |
कल्पनाओं का घरौंदा, रेत पर जब बनता है |
खेलकर कुछ क्षण उसे,खोना अच्छा लगता है||
वासनाओं के दमन से, दिव्यता खोजो उसी में|
प्रेम की उद्भावना को, भक्तिमय देखो उन्हीं में ||
तुम कल्पना में कर्म का, उद्भव दिखाते जाइए,
जिन्दगी में हर घड़ी, खुशियाँ मनाते जाइये |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें