स्मृतियों के पार क्षितिज पर,
झलक रहीं हैं अमृतमय बूँदें |
मधुवन सा यह जीवन लगता,
मन कहता अब नभ को छूलें ||
मानवता का परिचय पाया,
जिन आँखों की गहरायी में|
आज मुझे अभिशप्त लग रहे,
वे ही क्षण निज परछायी में||
व्यक्त करूं कैसे अनुभव को,
अपने शब्दों के माध्यम से |
सार्थक जीवन की तलाश मैं,
करता हूँ अब कोरे कागज में||
इसी प्रतीक्षा में निशिदिन मैं,
जीवन के पृष्ठ उलटता रहता |
जाने अनजाने मिल जाये ही,
इसी आस में लिखता रहता ||
कवि की भावना का परिचय,
कवितायें तो देती अवश्य हैं|
किन्तु नहीं वे बतला पाती हैं,
कितना गहरा जीवन तल है ||
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