बुधवार, 20 जुलाई 2011

कौमी एकता

   


   गुजरेगा ऐसा वक्त  भी, चमने बहार में |
   तन पे हजार जख्म, अपनों के वार से ||


               अपने ही पांव पर किये,जो वार हम कभी |
               दर्दे जखम सुना रहे ,अब दास्ताने बेबशी ||


   एक ओर जल चुकी है, पंजाब की मशाल |
   कश्मीर कर रहा है, अपना अलग सवाल ||


             हाथों को तन से काटकर, आजाद कर रहें हैं |
             हम अपने ही बाजुओं को,नाकाम कर रहें हैं|| 


   अब  क्रांति जरूरी है, सुख और चैन के लिए |
   क्यों वतन की आन पर, मुख मोड कर जियें ||


             दुश्मन तमाम और भी हैं, जो बेताब दिख रहे  |
             हम पहचान लें तभी उन्हें, दुश्मन का नाम दें| ||


    उल्फत के इस दौर में, बस सदभाव दिखाएँ|
    गाँधी, सुभाष,  नेहरु के,अरमां  को जिलायें ||

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