गुजरेगा ऐसा वक्त भी, चमने बहार में |
तन पे हजार जख्म, अपनों के वार से ||अपने ही पांव पर किये,जो वार हम कभी |
दर्दे जखम सुना रहे ,अब दास्ताने बेबशी ||
एक ओर जल चुकी है, पंजाब की मशाल |
कश्मीर कर रहा है, अपना अलग सवाल ||
हाथों को तन से काटकर, आजाद कर रहें हैं |
हम अपने ही बाजुओं को,नाकाम कर रहें हैं||
अब क्रांति जरूरी है, सुख और चैन के लिए |
क्यों वतन की आन पर, मुख मोड कर जियें ||
दुश्मन तमाम और भी हैं, जो बेताब दिख रहे |
हम पहचान लें तभी उन्हें, दुश्मन का नाम दें| ||
उल्फत के इस दौर में, बस सदभाव दिखाएँ|
गाँधी, सुभाष, नेहरु के,अरमां को जिलायें ||
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