धन वैभव तो मिल जाता,मिलता नहीं है यार क्यों ?
जीवन की दुर्गम यात्रा में, मिला नहीं पतवार क्यों ?
मैं एक संजोया था सपना ,
दुनिया अलग बनाऊंगा |
तन मन सब अर्पित कर,
उसमें कुछ फूल उगाऊँगा||
पर बसन्त में आया यह, जीवन का पतझाड़ क्यों ?
जीवन की दुर्गम यात्रा में,मिला नहीं पतवार क्यों ?
झुरमुट में भी झांक- झांक,
उपवन का उल्लास मनाया |
मगर कहीं मिल सका नहीं,
जिसने मन में प्रीति जगाया ||
हार गया पथिक भूलकर,अपना ही मझधार क्यों ?
जीवन की दुर्गम यात्रा में,मिला नहीं पतवार क्यों ?
साधन व उपकरण वही,
मित्र वही संसार वही है|
जीवन की इस यात्रा में,
अनुभव व अंदाज वही है ||
फिर भी जब आगे बढ़ता,मिलता मुझे कगार क्यों ?
जीवन की दुर्गम यात्रा में,मिला नहीं पतवार क्यों ?
जहाँ कहीं मैं गीत सुनाता,
चुप रहते सुन सजल कहानी |
मुस्कानों से भाव जगाकर,
जग करता कितनी मनमानी |
जिधर चला मैं भाव जगाने, वहीं नहीं दीदार क्यों ?
जीवन की दुर्गम यात्रा में,मिला नहीं पतवार क्यों ?
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