अप्रतिम महामानव हो गुरुवर , मानवता से अभिभूषित|
स्नेह, दया की प्रतिमा हो, सच्चरित्रता से महिमा मंडित |
अथक कर्मरत,अविरत जाग्रत,बहुबिधि अथ इति-ज्ञाता|
अगणित जन हैं तुमसे उपकृत, कर्ण-सदृश तुम हो त्राता||
परम ज्ञानी और कर्मयोगी भी, तुम ऐसे स्वराष्ट्र निर्माता |
यश वैभव से अभिसिंचित हो,सदा तुम्हारी जीवन गाथा ||
अखंड ज्योति के संरक्षक और, विचार- क्रांति- उदगाता |
वेदस्मृति उपनिषद आदि के, तुम हिंदी रूपान्तर दाता ||
गायत्री के पवित्र मन्त्राक्षर से, जनहित के, अनुसंधाता |
ऋषिकुल परम्परा संवाहक, धर्म सनातन के तुम ज्ञाता ||
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