रविवार, 17 जुलाई 2011

गुरूदेव के प्रति

  अप्रतिम महामानव हो गुरुवर , मानवता से अभिभूषित|
  सहृदय,सरल,विवेकी सदगुरु,तुम मनुज प्रेम से स्पंदित||
  स्नेह, दया की प्रतिमा हो, सच्चरित्रता से महिमा मंडित | 
  श्रद्धा के यह शब्द सुमन ही, अब करता हूँ तुझको अर्पित ||


  अथक कर्मरत,अविरत जाग्रत,बहुबिधि अथ इति-ज्ञाता|
  अगणित जन हैं तुमसे उपकृत, कर्ण-सदृश तुम हो त्राता||
  परम ज्ञानी और कर्मयोगी भी, तुम ऐसे स्वराष्ट्र निर्माता |
  यश वैभव से अभिसिंचित हो,सदा तुम्हारी जीवन गाथा ||
 
  अखंड ज्योति के संरक्षक और, विचार- क्रांति- उदगाता |
  वेदस्मृति उपनिषद आदि के, तुम हिंदी रूपान्तर दाता ||
  गायत्री के पवित्र  मन्त्राक्षर से, जनहित के, अनुसंधाता |
  ऋषिकुल परम्परा संवाहक, धर्म सनातन के तुम ज्ञाता  ||
  

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