अनन्त -दृष्टि
जब कभी एकान्त में,
अनन्त आकाश की ओर-
दृष्टि जाती है |
दिखते हैं अनगिनत तारे,
हल्के नीले पर्दों से,
मुस्कराते हुए और तभी,
मधुर स्वर से अनुबद्ध,
कोई अज्ञात प्रेरणा--
दस्तक देने लगती है |
कोई गीत उभरता है|
ओंठ फडकते हैं/मन गुनगुनाता है |
ह्रदय से निकलती है|
काव्य की एक धारा--
जो सम्वेदनाओं के सहारे,
अनन्त आकाश की ओर--
जाकर लींन हो जाती है|
उसी अनन्त में,
जहाँ से प्रस्फुटित हुई थी |
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