रविवार, 24 जुलाई 2011

श्रद्धाँजली [स्व०पूज्य पिता के प्रति ]

तोड़ तम संसार का, अनुचर बने हो शान्ति के |
छोड़कर  संसार  यह,  वासी  बने  एकान्त  के ||
रूप छवि और तेज को,लेकर कहाँ तुम जा रहे |     
पुत्र,  पत्नी , मित्र,  भगिनी, याद में सब रो रहे|| 

                     शायद करुण- क्रन्दन तुम्हें, संगीत सा  है लग रहा |
                     जिस भाव में उन्मत्त होकर,सिर तुम्हारा हिल रहा  ||
                      निष्प्राण शव के संग में,  दुःख हो रहा मन को मेरे  |
                      यदि मैं देखता जाते तुम्हें,तो साथ चल पड़ता तेरे ||

इसलिए  यह प्रार्थना, सुनकर मुझे कर दो क्षमा |
हाय किससे किस तरह, अब कर रहा हूँ प्रार्थना ||
आत्म ज्ञान होता विफल, जब दुःख के संत्रास से|
मैं  समझता  सुन रहे तुम, चैतन्यहीन प्रवाह से||

                     अब शून्य है रोना मेरा, जब शून्य है सुनना तेरा |
                     शून्यवत संसार में क्या, शून्य अब जीवन मेरा ||
                     जिन्दगी का मूल्य क्या,रोना विलखना मात्र ही|
                     लो लुट गयी दुनिया हमारी,अब तुम्हारे साथ ही ||  


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