तोड़ तम संसार का, अनुचर बने हो शान्ति के |
छोड़कर संसार यह, वासी बने एकान्त के ||
रूप छवि और तेज को,लेकर कहाँ तुम जा रहे |
पुत्र, पत्नी , मित्र, भगिनी, याद में सब रो रहे||
शायद करुण- क्रन्दन तुम्हें, संगीत सा है लग रहा |
जिस भाव में उन्मत्त होकर,सिर तुम्हारा हिल रहा ||
निष्प्राण शव के संग में, दुःख हो रहा मन को मेरे |
यदि मैं देखता जाते तुम्हें,तो साथ चल पड़ता तेरे ||
इसलिए यह प्रार्थना, सुनकर मुझे कर दो क्षमा |
हाय किससे किस तरह, अब कर रहा हूँ प्रार्थना ||
आत्म ज्ञान होता विफल, जब दुःख के संत्रास से|
मैं समझता सुन रहे तुम, चैतन्यहीन प्रवाह से||
अब शून्य है रोना मेरा, जब शून्य है सुनना तेरा |
शून्यवत संसार में क्या, शून्य अब जीवन मेरा ||
जिन्दगी का मूल्य क्या,रोना विलखना मात्र ही|
लो लुट गयी दुनिया हमारी,अब तुम्हारे साथ ही ||
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