रविवार, 31 जुलाई 2011

सार्थकता

सुख दुःख की अनुभूति,
विपरीत हो सकती है | 
दिन रात का अस्तित्व,
पृथक हो सकता  है |
हम और तुम हमेशा, 
जुदा रह सकते हैं | 
किन्तु यह सभी, 
एक दूसरे के पूरक हैं |
इनकी सार्थकता,
एक दूसरे को-----
साहचर्य के क्षितिज पर,
प्रतिबिम्बित तो करेगी |
जैसे दीपक अंधकार को |
जब तमस निरापद नहीं,
तो स्वीकृती अवांछनीय क्यों ?


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