रविवार, 17 जुलाई 2011

तुम्हारे लिएः

      दिल से उठा तूफ़ान,  अब ओंठों  पर आ  गया |
      मुददत  का भटका प्यार, की राहों मे आ गया ||

       यह प्यास मेरे मन की, तो स्वाती ही बुझाये |
       अंग अंग में उठे दर्द को, सुधि रश्मि मिटाए ||
       ख्वाबों में उभर आयी, खुशियाँ कहाँ  छिपाएँ |
       परिपाक सा ह्रदय में, बस  शोर ही  मचाये||

     चाहत की इस डगर पर, याचक बना कभी जब|
     तू बन गयी घटा और, मैं चातक  ही  रह  गया ||
     दिल  से  उठा  तूफ़ान  अब, ओंठों  पर आ गया |
    मुददत  का भटका प्यार, की  राहों  में आ गया||

          तुझे उपवनों में खोजा, और भंवरे सा गुनगुनाया|
          थक  हारकर वहीं पर, यह  ध्यान मन में आया||
          भटका हुआ  समझकर ही, फूलों  ने यह सुनाया |
          शायद  सुगन्धि  प्रेमी,  इन भंवरों ने हो चुराया||

      विश्वास की  परिधि पर, यह चोट थी  करारी|    
      फिर भी  मेरे  लिए तो, वह  फूल  बन  गया ||   
      दिल से उठा तूफ़ान अब,ओंठों  पर आ गया|
     मुददत का भटका प्यार,की राहों में आ गया||
  
           दमयंती और नल का, अभिशाप भी न था ऐसा| 
           जो दिन तुम्हारे ख्वाब में, लगता  महीनों जैसा ||
           तूफ़ान सा उठ रहा है, यह सागर में ज्वार कैसा|
           निःशब्द  होकर पुकारे, स्वाती को चातक जैसा ||

      आँखों  में  प्यास  लेकर,  जब  जब  बढा   आगे|
      इतिहास   कोई  पीछे  से, यह  आवाज  दे गया ||
      दिल  से  उठा  तूफ़ान  अब,  ओंठों  पर  आ  गया |
      मुददत का  भटका  प्यार,  की  राहों  में आ गया||
       

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