दिल में बसी थी प्रिय मूरत, आँखों में उभर जैसे आयी |
जीवन भर साथ निभाने के, वादों पर बदली सी छायी ||
ख़्वाबों में जला करता था दिल, ख़्वाबों में वह बुझता था |
यादों के सहारे ही रह रहकर,सागर में ज्वार उमड़ता था ||
होश नहीं मुझको सचमुच, एक दिन ये बहा ले जायेगा|
आखिर यह शरारत कर मुझसे,नादान यहाँ क्या पायेगा ||
मधुमास छिपाए अंतस में, आपत्ति घटाएं घिर आयी |
जीवन भर साथ निभाने के, वादों पर बदली सी छायी ||
मैं सहमे- सहमें इन कदमों से, उपवन तक तो आ पाया |
पर दिखी नहीं कोई कलिका, जिस पर उनकी हो साया ||
जब पीड़ा की अनुभूति जगी, तो फूलों से यह फरमाया ||
दिखने में तो सुन्दर लगते हो, क्या तुमने भी दुःख पाया |
अधखुली पखुडी की विपदा से,आंख वहीँ पर भर आयी |
जीवन भर साथ निभाने के, वादों पर बदली सी छायी ||
तनमन का उन्माद कभी, नयनों में उतर आता है जब |
आंसू बनकर बहने लगता ,और प्रज्ञा होती झंकृत तब ||
जीवन पथ पर यह आंसू , एक स्मृति चिह्न बनाते जब |
भूली बिसरी उन यादों से ही, अभिनव चित्र बनाते तब ||
बाँहों में उठी थी जो सिरहन, वह तृप्ति कभी न ले पायी |
जीवन भर साथ निभाने के, वादों पर बदली सी छायी ||
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