जिस घर में खिले दो फूल वहाँ,
सुख, चैन व समृद्धि खुद आये |
हाथों में सजाकर विजय दीप,
धरती भी खुश हो करके गाये ||
महक उठेगा घर व आँगन जब,
कोई उत्सव तब श्रृंगार करेगा |
सुख व दुःख की क्रम-संगति में,
आशा के कुछ अनुभाव भरेगा ||
उदभव सचमुच अब पर्याप्त नहीं ,
परिपालन भी करके दिखलाओ|
सीमित साधन से यदि चाहो तो,
तुम स्वर्ग धरा पर लेकर आओ ||
इतना ही यह कर्तव्य तुम्हारा,
सुखमय जीवन को पथ देगा |
शिक्षा का यह वरदान तभी तो,
पग पग पर तुम्हें अवसर देगा ||
दो सन्तानों से यह जीवन भी ,
सहज, सरल व सुखमय होगा |
पुत्र व पुत्री का अन्तर तुमको ,
अब मिटाना ही हितकर होगा |
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