रविवार, 18 सितंबर 2011

पथिक

मधुकर सा मधु जीवन मेरा |

रंगविरंगे इस उपवन को समझ लिया जीवन कुटिया |
पुष्प-शयन को अति आतुर मधुरस का भी मैं रसिया ||
मैं श्वासों में उच्छ्वास छिपाकर  कहलाता बहुरुपिया |
गीतों से संगीत सजाकर उपवन में संजोये हूँ कलियाँ || 

ऐसा सरस तपस्वी निशिदिन, लेता इक  नया बसेरा |
                                    मधुकर सा मधु जीवन मेरा ||

कठिन कर्म ,कोमल मन मेरा, श्याम वर्ण तनधारी |
असंख्य मृदुल सुमनों से सुरभित जीवन अनुगामी || 
कलियों का सहचर हूँ फिरभी पुष्पों का मैं अनुरागी |
मधुमय गीत सुनाता फिरता अब कौन कहे बैरागी ||

पंखुड़ियों का बन्दी बनकर, खोजूं नित नया सवेरा |
                                 मधुकर सा मधु जीवन मेरा |

1 टिप्पणी: