आज प्रश्न है मात्र एक ही ,
जीवन के हर एक पथ पर |
क्यों बिगडा सम्बन्ध हमारा ,
आत्मजनों से पग पग पर ||
विज्ञानं,धर्म व संस्कृति तो,
उन्नति- मार्ग प्रशस्त किया |
मंगल, चन्द्र, नक्षत्रों पर भी,
मानवता का अभिषेक किया ||
कृषि उद्योग विकासों में भी,
सौगुनी सफलता हम पाए हैं |
वैज्ञानिक संयंत्रों ने भी तो,
पृथ्वी को स्वर्ग बना डाले हैं ||
मानव को यंत्र बना करके ,
विज्ञानं छा गया जीवन में |
खो चुके नियंत्रण आज सभी,
जन- वृद्धि के अनुशीलन में ||
मीठे विष का यह आस्वादन,
यदि नहीं अभी भी छोड़ा है |
कैसे अस्तित्व बचा पाएंगे,
क्या इसे कभी भी सोचा है ||
देश, काल, परिवर्तन में ही,
खोजो तुम साहचर्य कहीं भी |
जब प्रकृति बदल देती है पथ,
तो मानव को आश्चर्य नहीं ||
सीमित परिवार असीमित धन,
सुख -समवृद्धि का ही पोषक है |
दो ही हों, दो से अधिक नहीं,
नवजीवन का उद्घोषक है ||
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